जलती धरा विरह बिछड़न को l
जतिंगा रुन्दन परिंदा अग्नि को ll
सजती जौहर सेज बरस दर बरस l
शरद अमावस हर काली रातों को ll
बरबस इतिहास पृष्टभूमि खोल जाती l
गाथा पद्मिनी संग कुनबे जौहर को ll
सामुहिक क्रंदन विचलित कातर तम l
सहमा कायनात इस भयावह मंज़र ll
विभोर आकर्षित चातक जतिंगा घाटी को l
रहस्य नैसर्गिक मध्य विधमान तरंगों को ll
कुनबा जतिंगा परिंदा अंतिम साँसों को l
जौहर अग्नि शिखा आहुति तिलिस्म को ll
जलती धरा विरह बिछड़न को l
जतिंगा रुन्दन परिंदा अग्नि को ll
शुभकामनाएं नए साल की |
ReplyDeleteनववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ अनुज !
ReplyDeleteजतिंगा घाटी में पक्षियों की मृत्यु की व्यथा का मार्मिक चित्रण ।
Deleteमार्मिक रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर मार्मिक प्रस्तुति।
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