Thursday, December 5, 2024

दर्द

रज़ा दर्द की भी सिर्फ साँसों पर फिदा l

साँसे भी मुकम्मल इसी दर्द की वज़ह ll


अंदाज फिराक दर्द सज़ा अह्सास का l

अर्जी मुनासिब इसके रंग गुलनार का ll


तरजीह दर्द तामील अधूरे ख्वाब का l

बुनियाद दर्द की काँटों संग गुलाब का ll


नियति दर्द रज़ा बिखरी जन्म महताब का l

साँसे कोरी रुखसत कैसे दर्द गुलाब का ll


दर्द शून्य ढाई आखर साँसों रुखसार का l

फिदा कायनात पर दर्द साँसों अहसान का ll


अकेली साँसें आयतें बँधी दर्द इश्क डोरी से l

मुकम्मल दर्द रूह रूमानियत इसी डोरी से ll

Wednesday, November 13, 2024

सम्मोहन

सम्मोहन तेरे दिल के तिल ने नजरों पर ऐसा फेरा l

दर्पण भी मेरा अकेले में खुद से शर्माने लगा ll



जादुई संचारी ने आहिस्ता आहिस्ता लिखी जो ग़ज़ल l

प्रतिबिंब उसकी बन गयी मेरे आरज़ू की धूप सहर ll



साक्षी किरणें ढलती सांध्य लालिमा घूंघट ढाल l

सुकून चुरा ले गयी पलकों अब्रों शमशीर नाल ll



नज़र उतारी नजरों की बना इसे ताबीज बाती साय l

मुक्तक खुल संवर गयी इन बंद पिंजर गलियारों माय ll



उलझी थी जो पाती बिन अक्षरों पहेली रंगीन धागों की l

महका गयी गुल बिन हीना ही इन कजरी हाथों की ll

Tuesday, October 15, 2024

पहेली

किंवदन्ती पहेलियाँ उस काफिर के दस्तखतों सी l

ख़त पैगाम कोई लुभा रही दस्तावेजों ताल्लुक़ सी ll


अख्तियार किया था बसेरा परिंदों ने बिन दस्तकों की l

इजाजत ढूँढ रही धुन उस धुन्ध बिसर जाने की ll


शून्य सी अधीर भूल भूलैया पगडण्डियों तालों की l

घूंघट आँचल ओट छुपा गयी लालिमा काजल की ll


कशिश कशमकश उधेड़बुन नयन इन बातों की l

नज़र डोरी पिरो रही अश्वगंधा वेणी साज़ों की ll


मोहलत ना थी समंदर को ठहर रुक जाने की l

रूख अकारथ बदल गया मौन कंपकंपाती साँसों की ll


किंवदन्ती पहेलियाँ उस काफिर के दस्तखतों सी l

ख़त पैगाम कोई लुभा रही दस्तावेजों ताल्लुक़ सी ll

Saturday, September 14, 2024

अश्रुधार

मुनादी थी बहुरूपिये अफवाहों अरण्य आग की l


आतिशबाजी सी जलती बुझती खुशफहमीयाँ बीमार की ll


क़ुर्बत द्वंद शील मुद्रा मंशें मंसूबे जज्बातों लहरें पैगाम की l


रूमानियत रुबाई कयास मुरीद वाकिफ इस कायनात की ll


कशमकश सुरूर तार्किक मिथ्या शुमार वहम ला इलाज की l


पन्ने अतीत के पलटती स्याह उजड़ी रातें मूसलाधार बरसात की ll


खुमार बदरंगी चादर अधूरी खामोश ख्वाबों मुलाकातों की l


साँझी सांची चाँदनी फ़िलहाल अर्ध चाँद इस उधार बेकरारी की ll


अक्षरों के मलाल अक्सर सगल संजीदा क्षितिज नैया पार की l


अफवाहों फेहरिस्त रंग बदल गयी बारिश इन टुटे अश्रुधार की ll

Monday, September 2, 2024

अल्पविराम

अश्वमेघ सा विचरण करता यह उच्छृंखल मन मयूर दर्पण नाचे मेघों साथ l

खोल जटा रुद्र हारा सा रूप त्रिनेत्र मल्हार सप्तरंगी बाण धुनों रंग जमाय ll


मृगतृष्णा परछाईं खटास की मीठी रूह सी चादर लड़कपन ओढ़ इतराय l

विभोर सागर मंथन बाँध अंजलि सी तरुणी लिखती खत बादलों को जाय ll


यादों अल्पविराम लम्हों ख्वाहिशों रक्स पूर्णविराम अंकुश रस बरसाय l

अनुमोद स्वरांजली स्याही कहानी अक्स कागज पहेली बन मुस्काय ll


पिंजर शून्य अर्पण हिम शिखर बहका मन काशी गंगा बहता जाय l

मेरु नीर दरख्तों सुगंध चाँदनी रात अकेली सी आँचल छुप शरमाय ll


आकर्षण दृष्टि खुली डोरी मन किताबों की स्वप्निल कहानी कहती जाय l

कलाई पुराने धागों सदृश्य बँधी अपराजिता कड़ी मन्नतों खुलती जाय ll


यादों अल्पविराम लम्हों ख्वाहिशों रक्स पूर्णविराम अंकुश रस बरसाय l

अनुमोद स्वरांजली स्याही कहानी अक्स कागज पहेली बन मुस्काय ll

Sunday, August 11, 2024

दो अक्षर

खुद की परछाई शोर गुम हो गयी अपनी ही आवाज पहचान  l

दर्द टीसन में भी जैसे मुस्का रही इसके साये का यह अंदाज ll



घरौंदा परिंदों का उजड़ था इसके जिस सूने आसमाँ सिरहन ताल l

नज़र किसी को आया ना इसके बिखरे मंलग नूर का महताब ll



बेहया नींद परायी गुमशुदा हो गयी खुद से खुद की पहचान l

शतरंज बिसात लूट ओझल हो गयी इसकी रूह अस्मत पुकार ll



ग्रहण डस गया चाँद के इस सितारों का पैबंद लगा संसार l

पृथक हो भटक गया मेरूदंड इसके सारे आकाशी गंगा मार्ग ll



सिमट रह गया सिर्फ दो अक्षरों से इसके वज़ूद का अहसास l

खुद की परछाई शोर गुम हो गयी अपनी ही आवाज पहचान  l

Sunday, July 21, 2024

ll कहानी ll

छुने से अल्फाजों को मेरे पंख लग गये अर्ध चाँद नयनों को तेरे l

लहरें दीवानी कहानी रचने लगी घटाओं की जज्बाती तरंगों पे ll


साँझ गुलाबी रिमझिम सिंदूरी बारिश खत लिखे बादलों कागज ने l

काजल गलियाँ आईना वो रंजिशें रक्स साँझा हो गयी फिर चाँद से ll


सबब ज़िल्द पुरानी कहानी किताबों की किस्मत डोरी कच्चे धागों की l

बातें यादों से करती शराफत बिछुड़न तन्हा बेपनाह रस्म नाराजगी की ll


बेनक़ाब हो गयी साज़िशें आँधियों शराफत सादगी सौदेबाजीयों की l

लकीरें ललाट की मेरे मिल शून्य विरासत हो गयी हाथों की लकीरों तेरे ll


उलझ संवर गयी कटी कटी लट्टे पलकें तेरी मेरी उड़ते पतंगों डोरी की l

लबों को शब्द तेरे क्या मिले निखर गयी कहानी तेरे मेरे आसमाँ की l


Saturday, July 6, 2024

स्वच्छंद पहेली

साये ने मेरे प्रतिलिपि लिखी थी एक गुमनामी शाम की l

गुलमोहर छाँव परछाई सहमी थी उस किनारे घाट की ll


कशिश सरोबार सिंदूरी श्रृंगार मन वैजयंती ताल की l

सहज लहर पदचापें ठौर उस क्षितिज गुलाबी साँझ की ll


साँझी लेखनी साँसे कोई प्रत्युत्तर अंकित इस राज की   l

बहक उलझ गयी थी केशें उस हसीं चित्रण ख्वाब की ll


अंतरंगी डोर वैतरणी रूपरेखा उस खोई पहेली शाम की l

सतरंगी साजों धुन पिरो रही छलकती ओस बूँदों ख़ास की ll


मंथन उस काव्य धरा सजली थी प्रतिलिपि मेरे नाम की l

स्वच्छंद मुक्त हो गयी पिंजर बंद धड़कने मेरे उस चाँद की l

Saturday, June 22, 2024

सुरमई

अल्फाजों के मेरे छुआ लबों ने जब तेरे मिल गये सब धाम l

अंतस फासले सिरहाने पाकीजा अंकुश सिमट गये सब ध्यान ll


युग युगांतर साधना महकी जिस सुन्दर क्षितिज सागर समर समाय l

नव यौवन लावण्य अंकुरन उदय जैसे इनके रूहों बीच समाय ll


छुपी थी जो राज की जो बातें इसकी आसमाँ परछाईं के साथ l

आते आते दरमियाँ थरथराते पन्ने पलटने लगे पुरानी किताबों के पास ll


बिन शब्दों का स्पर्श असर मुरादों को बांध गया कच्चे धागों साथ l

पतंग माँझे सी साँझा हो गयी जैसे बहकती साँसों की दीवार ll


अर्थहीन पतझड़ सी सज बिकी थी जिन सूनी गलियों की आवाज l

सुरमय बन गये बोल इसके पा साहिल दरिया किनारे का आगाज ll

Monday, June 17, 2024

बेजुबान इश्क

चिलमन गुलजारों जिसके लिखी थी एक बेजुबान इश्क कहानी l

तसव्वुर में तस्वीर रूहानी उसकी रुखसार सी ऐसी महक आयी ll


अल्फाज़ नयनों के उसके इन ख़ामोशियों की ग़ज़ल बन आयी l

रूह बदल धड़कने उस नूर ए माहताब के गालों की तिल बन आयी ll


कोई कसर कमी ना थी इशारों के इन इश्क इकरार इजहार में l

पहेली उलझी थी हिरनी के लंबे गुँथे बालों के सुहाने किरदार में ll


कच्ची डोरी ऊँची आसमाँ बादलों उड़ती रंगीन पतंगबाजी की l

बिन स्याही बेतरतीब लकीरें लिखी जुबानी खोये लफ्ज़ किनारों की ll


खोल गयी पंख आतुर परिंदों के बंद विरासत एकान्त पिंजरों की l

सज-धज संवर गयी उड़ान इस बेजुबान धूमिल इश्क किनारे की ll

Sunday, May 26, 2024

आभास

इश्क हुआ था जब चाँद से मैंने कहा था रात से l

हौले हौले चलना ढलना नहीं आज रात के लिए ll


चाँदनी इसकी मेरे प्रीतम का आभास हैं l

अक़्स में इसके बिछड़न की एक आवाज हैं ll


फ़रियाद हैँ मुझ जैसे इश्क लुटे फ़कीर की l

थाम ले अंगड़ाई ले करवटें बदलती साँसों की ll


ठहरी झिझकी सहमी तारों सजी रात सुन दरखास्त l

ठग मुस्करा चुपके से दे गयी पूर्ण चाँद को अर्ध आकर ll


अनसुनी कर मेरे बाबले मन की इश्क आगाज l

ढ़ल छुपा ले गयी संग अपने चाँद तारों की बारात ll

Tuesday, May 14, 2024

ग्रहण

ख्याल जेहन आया रुबरु करा लूँ खुद से खुद को आज l

थरथरा उठे पांव महीन नोंक चुभन कंपकंपी के साथ ll


निरंतर पराजय से क्षत विक्षित वैचारिक वाद संवाद l

द्वंद समावेश लिये यह आक्रमक सैली रंजिश द्वार ll


विस्फोटक चक्रव्यूह आगे नतमस्तक चक्रवर्ती मंथन काल l

हर बारीकी में बारूदी कण कण मस्तिष्क शून्य ग्रसत समाय ll


अभिलाषा परम्परा आलेख स्वप्न दिग्भ्रमित ग्रहण छाया माय l

मरुधरा सी मिथ्या काया मन रुदन आवेग विचलित करती जाय ll


रेखांकित चित्रण अधूरे रूह बदलते जज़्बातों की l

फेहरिस्त लहू रिसते बोझिल नयन दर्पण अरमानों की ll


संजो पिरो ना पायी फिर से कड़ियां उन पायदानों की l

आतुर बेकरार खयालात खुद मुझे खुद से मिलाने की ll

Saturday, May 4, 2024

रूहानी साँझ

पैगाम जो आहिस्ते दस्तक दे रहे थे रूहानी साँझ को l

करार कही एक छू रहा था इसके सुर्ख लबों साथ को ll


संगीत स्वर फ़रियाद आतुर जिस तरंग ढ़ल जाने को l

वो मौन दिलकशी डूबी होठों तन्हा सागर बीच आकर ll


आरज़ूयें बेकरार थी जिस अधूरी ग़ज़ल साज की तरह l

दिलजलों को ख्वाब वो लिखती गयी मनचलों की तरह ll


दास्ताँ बयां ना होती इस अल्हड़ दर्द के मासूमियत की l

जुबाँ अधूरे किश्तों पैबंद सजी कहानी सुना ना रही होती ll


मासूम नादानी मौसीक़ी रंगा चाँद कहर ढा गया इस बाती पर l

इनायतों सिमटी बदरी में किसी दिलचस्प आयतों की तरह ll




Sunday, April 7, 2024

अंजुमन

इस अंजुमन ताबीर की थी जिन ख्यालों की l

अक्सर उन बैरंग खतों ढ़ल जाती वस्ल रातों की ll


मुख़्तसर थी इनायतें इनके जिन ख्वाबों की l

रूबरू तस्वीर एक हुई थी उन फसानों की ll


साँझ की तस्दीक बैठे रहते इसी के अंजुमन में l

मुलाकातें कभी यही उस महताब से तो होगी ll


जुनून था जिस रूमानियत रूह आरज़ू का l

बारिश नीर सुगंध रंग उसकी ही महकाती थी ll


कह उस बेनज़ीर को हबीबी पुकारी थी जब यादें ll

बंजारे चिलमन की रफीक बन गयी थी साँसे l


मिलाप था यह एक अनजानी सहर आलाप का l

सिलसिला आगाज था हमसफर अह्सास का ll

Monday, March 11, 2024

ll आलिजा ll

सारंगी तान श्यामवर्ण अपराजिता चंदन खुशबु l

कजरी गजरे सुरमई सुरमे गुत्थी नफासत माथे बिंदु ll


किवदंती पिया वैजयन्ती खन खनाती झांझर कंगन l

अकल्पित रूह रोम सँवर भँवर आह्लादित दामन ll


रूद्राक्ष ताबीज साँझ क्षितिज काया कामिनी l

विभोर साधना मन अनुरागी आँचल धुन ताल्लीन l


मन्नत कलाई धागे लकीरें चाँद दुआएं काफिर l

स्वरांजली सामंजस्य धरा कर्णफूलों कुमकुम कालीन ll


रैना सूत्र सौगातें सौगंध पानी रूप केश घटा कहानी l

साया माया बदरी जादू घूंघट घुँघरू साक्षी धूप सयानी ll


अग्नि शिखा आभा मंडल बृज सखी बोल सुहानी l

करतल ध्वनि सजली ध्यान बाँसुरी मीठी मीठी धानी ll

Saturday, March 2, 2024

दूरियाँ

दूरियाँ थी मेरे रहनुमा राहों ख्यालातों किनारों में l

गौण मौन खड़े थे इस पथ सारे जज्बात मुहानों पे ll 


डूब गयी थी कमसिन काया अलबेली मोज धाराओं में l 

निकाह कामिनी बाँधी जिसे मन्नत पाक दिशा धागों ने ll 


रुखसत अश्रु व्यथित रो ठहरे हुए नयनों परिभाषा में l 

खोये पैगाम अंजुमन सागर बह चले जल तरंगों पे ll  


गुलदस्ता मेहर मुरझा गया स्वप्निल अंकुरण से पहले l 

अंतर्बोध ताज मीनारे ढहा बहा गया सूखे सैलाब तले ll   


सौदा गुलमोहर किरदारों का टाँक गया पैबंद इसका l 

फूल किताबों के बदरंग हो गए इन सलवटों के पीछे ll

Friday, February 2, 2024

सजा

अविरल सिसकियाँ अंतर्मन पहेली पदचापों की l

प्रश्नन चिन्ह पानी तरंगों मचलती मझधारो की ll 


जिस्म सुनहरी झुर्रियां लिपटी रूह बिन बरसातों की l 

वात्सल्य खामोश अनकहे खोये हुए शब्द बातों की ll 


मसौदा लेखन अम्बर इस काफिर को आज़माने की l 

चिनार दरख्तों संग निपजी वो सफर मुलाक़ातों की ll 


आराधना रीत सूनी वेदना कोरे फागन रंग साधना की l

उजाड़ती मत असहमत गुलज़ार गलियां बारातों की ll


सब्र सदियों आईना गर्त उस इंतजार की l

खुशफहमी गलतफहमी इस नादानी की ll


कल्पना भँवर टूटा ना जब दिल लगाने की l

चाह थी उस चाँद की नजर बन जाने की ll


कैसे भूल जाऊँ हवा उस गली चौबारे की l

आदत हैं जिसको सिर्फ दिल लगाने की ll


रब ने दी थी मोहलत मोहब्बत में जी जाने की l

मयकशा छलका गया सजा इसे जी जाने की ll

Saturday, January 20, 2024

ll अश्रुधार ll

तेरे सहर की दर्पण भीड़ में भींगी पलकों टूटा था एक आईना l

अश्कों जुनून साहिल बिखरा था हज़ारों बिन रंगों बरसात का ll


किरदार जुदा था आइने वजूद के उस नीले अम्बर महताब का l

बंद पलकों उस कशिश लहू राज छुपे थे मोतियों अश्रुधार का ll


काश्तकार था यह इजहार इश्तहार इस अजूबी दस्तकार का l

पढ़ समझ ना सका धुन्ध बूँद लिपटी धुन इस कलमाकार का ll


आवारा बादल मूँदी मूँदी आँखें इस खाली खाली दिल मकां रात का l

था तमअदृश्य सजली चकोर रूह बदलती गहरी परछाई साथ का ll


गूँज रहा जिक्र कहीं कहीं सिर्फ तेरी इस गुमनाम अलबेली साँझ का l

परवाज भरते आईनों ने हज़ारों परवान बिखेरे तेरे अक्स आकर का ll

Sunday, January 7, 2024

ख्याल

इत्र सी ख्वाबों तरंगें महकाती साँसे खतों की l

गुलदस्ता वो पुराने अघलिखे ख्यालातों की ll


अकेले में खिलखिला दे मुस्कान जो अधरों की l

पहेली वो मेरे चाँद के अनकहे अल्फाजों की ll 


पुंज गूंज वज्र अंबर सरीखी मलिनी गणना की l 

घूंघट वेणी छिपी केश माधुर्य यन्त्र मंत्रणा की ll 


अर्जियाँ लिखती लहरें कपोलों मनमर्जियाँ की l 

खोई धड़कने तलाशती भींगी डूबती साँसों की ll


साँझ ढलती मधुर रंग छलकाती संगम बेला किरणों की l 

झांझर घुँघरू मन दर्पण नचा जाती अघलिखे ख्यालों की ll