सम्मोहन तेरे दिल के तिल ने नजरों पर ऐसा फेरा l
दर्पण भी मेरा अकेले में खुद से शर्माने लगा ll
जादुई संचारी ने आहिस्ता आहिस्ता लिखी जो ग़ज़ल l
प्रतिबिंब उसकी बन गयी मेरे आरज़ू की धूप सहर ll
साक्षी किरणें ढलती सांध्य लालिमा घूंघट ढाल l
सुकून चुरा ले गयी पलकों अब्रों शमशीर नाल ll
नज़र उतारी नजरों की बना इसे ताबीज बाती साय l
मुक्तक खुल संवर गयी इन बंद पिंजर गलियारों माय ll
उलझी थी जो पाती बिन अक्षरों पहेली रंगीन धागों की l
महका गयी गुल बिन हीना ही इन कजरी हाथों की ll
बहुत सुन्दर सृजन ।
ReplyDeleteआदरणीया मीना दीदी जी
Deleteआपका उत्साहवर्धन ही मेरी कूची के रंगों की सुनहरी धुप की मीठी बारिश हैं, आशीर्वाद की पुँजी के लिए तहे दिल से नमन
Very Nice Post....
ReplyDeleteWelcome to my blog for new post....
Thank you so much
Deleteवाह हर शेर कमाल ...
ReplyDeleteआदरणीय दिगंबर भाई साब
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद