Sunday, August 11, 2024

दो अक्षर

खुद की परछाई शोर गुम हो गयी अपनी ही आवाज पहचान  l

दर्द टीसन में भी जैसे मुस्का रही इसके साये का यह अंदाज ll



घरौंदा परिंदों का उजड़ था इसके जिस सूने आसमाँ सिरहन ताल l

नज़र किसी को आया ना इसके बिखरे मंलग नूर का महताब ll



बेहया नींद परायी गुमशुदा हो गयी खुद से खुद की पहचान l

शतरंज बिसात लूट ओझल हो गयी इसकी रूह अस्मत पुकार ll



ग्रहण डस गया चाँद के इस सितारों का पैबंद लगा संसार l

पृथक हो भटक गया मेरूदंड इसके सारे आकाशी गंगा मार्ग ll



सिमट रह गया सिर्फ दो अक्षरों से इसके वज़ूद का अहसास l

खुद की परछाई शोर गुम हो गयी अपनी ही आवाज पहचान  l

6 comments:

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    1. आदरणीया विभा दीदी जी
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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  2. Replies
    1. आदरणीय सुशील भाई साब
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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  3. Replies
    1. आदरणीया मीना दीदी जी
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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