खुद की परछाई शोर गुम हो गयी अपनी ही आवाज पहचान l
दर्द टीसन में भी जैसे मुस्का रही इसके साये का यह अंदाज ll
घरौंदा परिंदों का उजड़ था इसके जिस सूने आसमाँ सिरहन ताल l
नज़र किसी को आया ना इसके बिखरे मंलग नूर का महताब ll
बेहया नींद परायी गुमशुदा हो गयी खुद से खुद की पहचान l
शतरंज बिसात लूट ओझल हो गयी इसकी रूह अस्मत पुकार ll
ग्रहण डस गया चाँद के इस सितारों का पैबंद लगा संसार l
पृथक हो भटक गया मेरूदंड इसके सारे आकाशी गंगा मार्ग ll
सिमट रह गया सिर्फ दो अक्षरों से इसके वज़ूद का अहसास l
खुद की परछाई शोर गुम हो गयी अपनी ही आवाज पहचान l
रोचक
ReplyDeleteआदरणीया विभा दीदी जी
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
सुंदर
ReplyDeleteआदरणीय सुशील भाई साब
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
सुन्दर सृजन ।
ReplyDeleteआदरणीया मीना दीदी जी
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद