खुद की परछाई शोर गुम हो गयी अपनी ही आवाज पहचान l
दर्द टीसन में भी जैसे मुस्का रही इसके साये का यह अंदाज ll
घरौंदा परिंदों का उजड़ था इसके जिस सूने आसमाँ सिरहन ताल l
नज़र किसी को आया ना इसके बिखरे मंलग नूर का महताब ll
बेहया नींद परायी गुमशुदा हो गयी खुद से खुद की पहचान l
शतरंज बिसात लूट ओझल हो गयी इसकी रूह अस्मत पुकार ll
ग्रहण डस गया चाँद के इस सितारों का पैबंद लगा संसार l
पृथक हो भटक गया मेरूदंड इसके सारे आकाशी गंगा मार्ग ll
सिमट रह गया सिर्फ दो अक्षरों से इसके वज़ूद का अहसास l
खुद की परछाई शोर गुम हो गयी अपनी ही आवाज पहचान l