Sunday, August 11, 2024

दो अक्षर

खुद की परछाई शोर गुम हो गयी अपनी ही आवाज पहचान  l

दर्द टीसन में भी जैसे मुस्का रही इसके साये का यह अंदाज ll



घरौंदा परिंदों का उजड़ था इसके जिस सूने आसमाँ सिरहन ताल l

नज़र किसी को आया ना इसके बिखरे मंलग नूर का महताब ll



बेहया नींद परायी गुमशुदा हो गयी खुद से खुद की पहचान l

शतरंज बिसात लूट ओझल हो गयी इसकी रूह अस्मत पुकार ll



ग्रहण डस गया चाँद के इस सितारों का पैबंद लगा संसार l

पृथक हो भटक गया मेरूदंड इसके सारे आकाशी गंगा मार्ग ll



सिमट रह गया सिर्फ दो अक्षरों से इसके वज़ूद का अहसास l

खुद की परछाई शोर गुम हो गयी अपनी ही आवाज पहचान  l