Saturday, June 22, 2024

सुरमई

अल्फाजों के मेरे छुआ लबों ने जब तेरे मिल गये सब धाम l

अंतस फासले सिरहाने पाकीजा अंकुश सिमट गये सब ध्यान ll


युग युगांतर साधना महकी जिस सुन्दर क्षितिज सागर समर समाय l

नव यौवन लावण्य अंकुरन उदय जैसे इनके रूहों बीच समाय ll


छुपी थी जो राज की जो बातें इसकी आसमाँ परछाईं के साथ l

आते आते दरमियाँ थरथराते पन्ने पलटने लगे पुरानी किताबों के पास ll


बिन शब्दों का स्पर्श असर मुरादों को बांध गया कच्चे धागों साथ l

पतंग माँझे सी साँझा हो गयी जैसे बहकती साँसों की दीवार ll


अर्थहीन पतझड़ सी सज बिकी थी जिन सूनी गलियों की आवाज l

सुरमय बन गये बोल इसके पा साहिल दरिया किनारे का आगाज ll

5 comments:

  1. बहुत बढ़िया।

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  2. अच्छा है। किंतु पहला अंतरा समझ नहीं आया।

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 26जून अप्रैल 2024को साझा की गयी है....... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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