अल्फाजों के मेरे छुआ लबों ने जब तेरे मिल गये सब धाम l
अंतस फासले सिरहाने पाकीजा अंकुश सिमट गये सब ध्यान ll
युग युगांतर साधना महकी जिस सुन्दर क्षितिज सागर समर समाय l
नव यौवन लावण्य अंकुरन उदय जैसे इनके रूहों बीच समाय ll
छुपी थी जो राज की जो बातें इसकी आसमाँ परछाईं के साथ l
आते आते दरमियाँ थरथराते पन्ने पलटने लगे पुरानी किताबों के पास ll
बिन शब्दों का स्पर्श असर मुरादों को बांध गया कच्चे धागों साथ l
पतंग माँझे सी साँझा हो गयी जैसे बहकती साँसों की दीवार ll
अर्थहीन पतझड़ सी सज बिकी थी जिन सूनी गलियों की आवाज l
सुरमय बन गये बोल इसके पा साहिल दरिया किनारे का आगाज ll
🌈🙏
ReplyDeleteआदरणीया विभा दीदी जी
Deleteधन्यवाद ii
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआदरणीय आलोक भाई साब
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteआदरणीया रूपा दीदी जी
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
अच्छा है। किंतु पहला अंतरा समझ नहीं आया।
ReplyDeleteआदरणीया मीना दीदी जी
Deleteधन्यवाद ii
आदरणीया पम्मी दीदी जी
ReplyDeleteमेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिए तहे दिल से आपका आभार