अल्फाजों के मेरे छुआ लबों ने जब तेरे मिल गये सब धाम l
अंतस फासले सिरहाने पाकीजा अंकुश सिमट गये सब ध्यान ll
युग युगांतर साधना महकी जिस सुन्दर क्षितिज सागर समर समाय l
नव यौवन लावण्य अंकुरन उदय जैसे इनके रूहों बीच समाय ll
छुपी थी जो राज की जो बातें इसकी आसमाँ परछाईं के साथ l
आते आते दरमियाँ थरथराते पन्ने पलटने लगे पुरानी किताबों के पास ll
बिन शब्दों का स्पर्श असर मुरादों को बांध गया कच्चे धागों साथ l
पतंग माँझे सी साँझा हो गयी जैसे बहकती साँसों की दीवार ll
अर्थहीन पतझड़ सी सज बिकी थी जिन सूनी गलियों की आवाज l
सुरमय बन गये बोल इसके पा साहिल दरिया किनारे का आगाज ll