Sunday, May 26, 2024

आभास

इश्क हुआ था जब चाँद से मैंने कहा था रात से l

हौले हौले चलना ढलना नहीं आज रात के लिए ll


चाँदनी इसकी मेरे प्रीतम का आभास हैं l

अक़्स में इसके बिछड़न की एक आवाज हैं ll


फ़रियाद हैँ मुझ जैसे इश्क लुटे फ़कीर की l

थाम ले अंगड़ाई ले करवटें बदलती साँसों की ll


ठहरी झिझकी सहमी तारों सजी रात सुन दरखास्त l

ठग मुस्करा चुपके से दे गयी पूर्ण चाँद को अर्ध आकर ll


अनसुनी कर मेरे बाबले मन की इश्क आगाज l

ढ़ल छुपा ले गयी संग अपने चाँद तारों की बारात ll

8 comments:

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    1. आदरणीय सुशील भाई साब
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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  2. अति सुन्दर !! मनमोहक सृजन ।

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  3. चाँदनी इसकी मेरे प्रीतम का आभास हैं l

    अक़्स में इसके बिछड़न की एक आवाज हैं ll
    वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर..

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  4. Replies
    1. आदरणीय आलोक भाई साब
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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  5. Replies
    1. आदरणीय शिवम भाई साब
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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