पैगाम जो आहिस्ते दस्तक दे रहे थे रूहानी साँझ को l
करार कही एक छू रहा था इसके सुर्ख लबों साथ को ll
संगीत स्वर फ़रियाद आतुर जिस तरंग ढ़ल जाने को l
वो मौन दिलकशी डूबी होठों तन्हा सागर बीच आकर ll
आरज़ूयें बेकरार थी जिस अधूरी ग़ज़ल साज की तरह l
दिलजलों को ख्वाब वो लिखती गयी मनचलों की तरह ll
दास्ताँ बयां ना होती इस अल्हड़ दर्द के मासूमियत की l
जुबाँ अधूरे किश्तों पैबंद सजी कहानी सुना ना रही होती ll
मासूम नादानी मौसीक़ी रंगा चाँद कहर ढा गया इस बाती पर l
इनायतों सिमटी बदरी में किसी दिलचस्प आयतों की तरह ll
अच्छी है |
ReplyDeleteआदरणीय सुशील भाई साब
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
वाह।
ReplyDeleteआदरणीय शिवम भाई साब
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
सुन्दर
ReplyDeleteआदरणीय आलोक भाई साब
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
वाह ... बहुत अच्छा लिखा ...
ReplyDeleteआदरणीय दिगम्बर भाई साब
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
मासूम नादानी मौसीक़ी रंगा चाँद कहर ढा गया इस बाती पर l
ReplyDeleteइनायतों सिमटी बदरी में किसी दिलचस्प आयतों की तरह ll',,,',‘बहुत सुंदर हमेशा की तरह