इश्क हुआ था जब चाँद से मैंने कहा था रात से l
हौले हौले चलना ढलना नहीं आज रात के लिए ll
चाँदनी इसकी मेरे प्रीतम का आभास हैं l
अक़्स में इसके बिछड़न की एक आवाज हैं ll
फ़रियाद हैँ मुझ जैसे इश्क लुटे फ़कीर की l
थाम ले अंगड़ाई ले करवटें बदलती साँसों की ll
ठहरी झिझकी सहमी तारों सजी रात सुन दरखास्त l
ठग मुस्करा चुपके से दे गयी पूर्ण चाँद को अर्ध आकर ll
अनसुनी कर मेरे बाबले मन की इश्क आगाज l
ढ़ल छुपा ले गयी संग अपने चाँद तारों की बारात ll