इस अंजुमन ताबीर की थी जिन ख्यालों की l
अक्सर उन बैरंग खतों ढ़ल जाती वस्ल रातों की ll
मुख़्तसर थी इनायतें इनके जिन ख्वाबों की l
रूबरू तस्वीर एक हुई थी उन फसानों की ll
साँझ की तस्दीक बैठे रहते इसी के अंजुमन में l
मुलाकातें कभी यही उस महताब से तो होगी ll
जुनून था जिस रूमानियत रूह आरज़ू का l
बारिश नीर सुगंध रंग उसकी ही महकाती थी ll
कह उस बेनज़ीर को हबीबी पुकारी थी जब यादें ll
बंजारे चिलमन की रफीक बन गयी थी साँसे l
मिलाप था यह एक अनजानी सहर आलाप का l
सिलसिला आगाज था हमसफर अह्सास का ll
सुन्दर
ReplyDeleteआदरणीय सुशील भाई साब
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 10 अप्रैल 2024को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteआदरणीय हरीश भाई साब
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआदरणीय आलोक भाई साब
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
Waah
ReplyDeleteआदरणीय भाई साब
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
बहुत सुन्दर रचना ।
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