इस अंजुमन ताबीर की थी जिन ख्यालों की l
अक्सर उन बैरंग खतों ढ़ल जाती वस्ल रातों की ll
मुख़्तसर थी इनायतें इनके जिन ख्वाबों की l
रूबरू तस्वीर एक हुई थी उन फसानों की ll
साँझ की तस्दीक बैठे रहते इसी के अंजुमन में l
मुलाकातें कभी यही उस महताब से तो होगी ll
जुनून था जिस रूमानियत रूह आरज़ू का l
बारिश नीर सुगंध रंग उसकी ही महकाती थी ll
कह उस बेनज़ीर को हबीबी पुकारी थी जब यादें ll
बंजारे चिलमन की रफीक बन गयी थी साँसे l
मिलाप था यह एक अनजानी सहर आलाप का l
सिलसिला आगाज था हमसफर अह्सास का ll