Sunday, April 7, 2024

अंजुमन

इस अंजुमन ताबीर की थी जिन ख्यालों की l

अक्सर उन बैरंग खतों ढ़ल जाती वस्ल रातों की ll


मुख़्तसर थी इनायतें इनके जिन ख्वाबों की l

रूबरू तस्वीर एक हुई थी उन फसानों की ll


साँझ की तस्दीक बैठे रहते इसी के अंजुमन में l

मुलाकातें कभी यही उस महताब से तो होगी ll


जुनून था जिस रूमानियत रूह आरज़ू का l

बारिश नीर सुगंध रंग उसकी ही महकाती थी ll


कह उस बेनज़ीर को हबीबी पुकारी थी जब यादें ll

बंजारे चिलमन की रफीक बन गयी थी साँसे l


मिलाप था यह एक अनजानी सहर आलाप का l

सिलसिला आगाज था हमसफर अह्सास का ll