दूरियाँ थी मेरे रहनुमा राहों ख्यालातों किनारों में l
गौण मौन खड़े थे इस पथ सारे जज्बात मुहानों पे ll
डूब गयी थी कमसिन काया अलबेली मोज धाराओं में l
निकाह कामिनी बाँधी जिसे मन्नत पाक दिशा धागों ने ll
रुखसत अश्रु व्यथित रो ठहरे हुए नयनों परिभाषा में l
खोये पैगाम अंजुमन सागर बह चले जल तरंगों पे ll
गुलदस्ता मेहर मुरझा गया स्वप्निल अंकुरण से पहले l
अंतर्बोध ताज मीनारे ढहा बहा गया सूखे सैलाब तले ll
सौदा गुलमोहर किरदारों का टाँक गया पैबंद इसका l
फूल किताबों के बदरंग हो गए इन सलवटों के पीछे ll
सुन्दर
ReplyDeleteआदरणीय सुशील भाई साब
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
बहुत सुंदर हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteआदरणीया मीना दीदी जी
Deleteआपका उत्साहवर्धन ही मेरी कूची के रंगों की सुनहरी धुप की मीठी बारिश हैं, आशीर्वाद की पुँजी के लिए तहे दिल से नमन
सुंदर रचना
ReplyDeleteआदरणीय आलोक भाई साब
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
वाह
ReplyDeleteबहुत सुंदर
आदरणीय ज्योति भाई साब
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
रुखसत अश्रु व्यथित रो ठहरे हुए नयनों परिभाषा में l
ReplyDeleteखोये पैगाम अंजुमन सागर बह चले जल तरंगों पे ll
वाह! बहुत ही सुन्दर रचना 🙏
आदरणीया कामिनी दीदी जी
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteआदरणीय भाई साब
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद