तेरे सहर की दर्पण भीड़ में भींगी पलकों टूटा था एक आईना l
अश्कों जुनून साहिल बिखरा था हज़ारों बिन रंगों बरसात का ll
किरदार जुदा था आइने वजूद के उस नीले अम्बर महताब का l
बंद पलकों उस कशिश लहू राज छुपे थे मोतियों अश्रुधार का ll
काश्तकार था यह इजहार इश्तहार इस अजूबी दस्तकार का l
पढ़ समझ ना सका धुन्ध बूँद लिपटी धुन इस कलमाकार का ll
आवारा बादल मूँदी मूँदी आँखें इस खाली खाली दिल मकां रात का l
था तमअदृश्य सजली चकोर रूह बदलती गहरी परछाई साथ का ll
गूँज रहा जिक्र कहीं कहीं सिर्फ तेरी इस गुमनाम अलबेली साँझ का l
परवाज भरते आईनों ने हज़ारों परवान बिखेरे तेरे अक्स आकर का ll