पूर्ण शून्य हूँ उस माथे बिंदिया सरताज का l
नमामी ललाट सजी सिंदूरी काया साज का ll
किनारा उसकी आँचल ओढ़नी छाँव का l
इबादत सजी पतित पावनी गंगा साज का l
नीलाम्बर उमंगों प्रार्थना सजी भाव का l
अर्ध आकार जिसमें निश्चल प्रेम साज का l
प्रचंड उत्सर्ग प्रखर उस सृष्टि अभिमान का l
नयी धरा काव्य कहती इसकी नयन साँझ का ll
केशों सजी उस वेणी मधुरस खास अंदाज का l
साँसों बिन धड़कती इसकी हिरनी चाल का ll
कर्णकार गलहार उस वैजयंती शीतल धार का l
शून्य पूर्ण कर गया जो मेरी रूह कर्णताल साज का ll