तपती रेगिस्तानी रेत में छाले उभरे नंगे पांव में l
निपजी थी एक जीवट विभाषा इसके साथ में ll
बुलंद कर हौसलों को बढ़ता चल यामिनी राह पे l
विध्वंशी लू थपेड़े पराजित से नतमस्तक साथ में ll
मृगतृष्णा प्यासी इस धरोहर पिपासा रूंदन नाद में l
सुर्ख लहू भी जम गया बबूल की सहमी काली रात में ll
खंजर चुभोती तम काली घनी कोहरी डरावनी छांव में l
रुआँसा उदास अकेला रूह अर्ध चाँद परछाई साथ में ll
कुंठित मन व्याकुल अभिलाषा अधीर असहज वैतरणी नाच में l
धैर्य धर अधरों नाच रही फिर भी निंद्रा प्रफुल्लित अपने साथ में ll
नींद का सच यही है
ReplyDeleteबहुत अच्छी और सुंदर रचना
बधाई
आदरणीय ज्योति भाई साब
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
कुछ संस्कृतनिष्ठ और अन्य सुंदर शब्दों से सजी सुंदर रचना
ReplyDeleteआदरणीया अनीता दीदी जी
Deleteआपका उत्साहवर्धन ही मेरी कूची के रंगों की सुनहरी धुप की मीठी बारिश हैं, आशीर्वाद की पुँजी के लिए तहे दिल से नमन
वाह💙❤️
ReplyDeleteआदरणीय शिवम् भाई साब
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
वाह
ReplyDeleteआदरणीय सुशील भाई साब
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
आशा और उम्मीद का संचार करता ... सुन्दर शेर सभी ...
ReplyDeleteआदरणीय दिगम्बर भाई साब
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
बहुत-बहुत सुन्दर रचना गुरुजी
ReplyDeleteआदरणीय हरीश भाई साब
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
बहुत सुंदर रचना,
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Deleteआदरणीया मधुलिका दीदी जी
ह्रदय तल से आपका आभार, आपका प्रोत्साहन ही सही मायने में मेरी लेखनी का ऊर्जा स्त्रोत हैं