तपती रेगिस्तानी रेत में छाले उभरे नंगे पांव में l
निपजी थी एक जीवट विभाषा इसके साथ में ll
बुलंद कर हौसलों को बढ़ता चल यामिनी राह पे l
विध्वंशी लू थपेड़े पराजित से नतमस्तक साथ में ll
मृगतृष्णा प्यासी इस धरोहर पिपासा रूंदन नाद में l
सुर्ख लहू भी जम गया बबूल की सहमी काली रात में ll
खंजर चुभोती तम काली घनी कोहरी डरावनी छांव में l
रुआँसा उदास अकेला रूह अर्ध चाँद परछाई साथ में ll
कुंठित मन व्याकुल अभिलाषा अधीर असहज वैतरणी नाच में l
धैर्य धर अधरों नाच रही फिर भी निंद्रा प्रफुल्लित अपने साथ में ll