कल देखा था बारिश को जुल्फों पर फिसलते हुए l
हौले से आँचल को लिपट कंगन डोरी बंधते हुए ll
मदमाती सी भींग रही थी दामन की पतवार l
संग पुरबाई झोंकों से कर्णफूल कर रहे थे करताल ll
महकी बालों गुँथी वेणी काले बादल रमी थी ऐसी l
रंग रुखसार बिखरा गयी थी इन्द्रधनुषी घटा शरमाय ll
लहर संगीत धुन बरसी थी जो नयनों काजल से l
कजरी स्याह मेघ सी ढाल गयी थी सुरमई आँखों में ll
झूमी थी जो झांझर एक पल शहनाई मृदुल तान सी l
सहमा लज्जा गयी थी बिंदिया इस माथे दर्पण ताज की ll
घूंघट पहरा ना था इसके सुनहरे आसमाँ आँगन में l
ग़ज़ल कोई लिख गयी कुदरत मानो बारिश बूँदों में ll
सुन्दर
ReplyDeleteआदरणीय सुशील भाई साब
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
बारिश का सुंदर वर्णन
ReplyDeleteआदरणीया अनीता दीदी जी
Deleteआपका उत्साहवर्धन ही मेरी कूची के रंगों की सुनहरी धुप की मीठी बारिश हैं, आशीर्वाद की पुँजी के लिए तहे दिल से नमन
अत्यंत सुन्दर मनोहारी सृजन ।
ReplyDeleteआदरणीया मीना दीदी जी
Deleteआपका उत्साहवर्धन ही मेरी कूची के रंगों की सुनहरी धुप की मीठी बारिश हैं, आशीर्वाद की पुँजी के लिए तहे दिल से नमन
वाह मनोज जी प्रकृति सुंदरी के साथ नायिका की खूबसूरती का मनमोहक वर्णन
ReplyDeleteआदरणीया मीना दीदी जी
Deleteआपका उत्साहवर्धन ही मेरी कूची के रंगों की सुनहरी धुप की मीठी बारिश हैं, आशीर्वाद की पुँजी के लिए तहे दिल से नमन
वाह, बहुत ही सुंदर।
ReplyDeleteआदरणीय शिवम् भाई साब
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद