Tuesday, August 8, 2023

ll बारिश की तान ll

कल देखा था बारिश को जुल्फों पर फिसलते हुए l

हौले से आँचल को लिपट कंगन डोरी बंधते हुए ll



मदमाती सी भींग रही थी दामन की पतवार l

संग पुरबाई झोंकों से कर्णफूल कर रहे थे करताल ll



महकी बालों गुँथी वेणी काले बादल रमी थी ऐसी l

रंग रुखसार बिखरा गयी थी इन्द्रधनुषी घटा शरमाय ll



लहर संगीत धुन बरसी थी जो नयनों काजल से l

कजरी स्याह मेघ सी ढाल गयी थी सुरमई आँखों में ll



झूमी थी जो झांझर एक पल शहनाई मृदुल तान सी l

सहमा लज्जा गयी थी बिंदिया इस माथे दर्पण ताज की ll



घूंघट पहरा ना था इसके सुनहरे आसमाँ आँगन में l

ग़ज़ल कोई लिख गयी कुदरत मानो बारिश बूँदों में ll

Thursday, August 3, 2023

सगर

गुजारी थी कई रातें ख्वाबों के सिरहाने तले l

सितारों की आगोश में चाँदनी लिहाफ तले ll


फिर भी तवायफ सी थी ख्वाहिशें धड़कनों की l

राहों टूटे घुँघरू पिरो ना पायी माला साँसों की ll


बंदिशें कौन सी क्यों थी चाँद की पर्दानशी में l

बेपर्दा कर ना पायी जो पलकों तले राज छुपे ll


दूरियों के अह्सास में भी जैसे कोई आहट साथ थी l

फुसफुसा रही हवा झोंकों में कुछ तो खास खनकार थी ll


मिली थी जो कल फिर उस पुराने बरगद छाँव तले l

परछाई की उस रूमानी रूह में रूहानी साँझ थी ll


आकार निराकार था उस प्रतिबिंब के दर्पण नजर में l

फिर भी हर अल्फाजों में उसकी ही बात सगर रही थी ll