अदना सा ख्याल यूँ ही जाने क्यों मन को भा गया l
गुफ़्तगू इश्क की खुद से भी कर लिया करूँ कभी ll
गुजरु जब फिर यादों की उन तंग गलियों से कभी l
जी लूँ हर वो लम्हा उम्र जहां आ ठहरी थी कभी ll
हँसूँ खुल कर मिल कर खुद से इसके बाद जब कभी l
झुर्रियों चेहरे की सफ़ेदी बालों की इतराने लगे खुशी ll
अन्तर फर्क़ करूँ उन लिफाफों में कैसे फिर कभी l
सूखे गुलाब आज भी जब महक रहे ताजे से वहीं ll
संवारू निहारूं जब जब दर्पण फुर्सत लम्हों में कभी l
परछाईं झलक इश्क की भी शिकवा और ना करे कभी ll