सुन सावन के पतझड़ की रागिनी आलाप l
ख़त लिख भेजे बारिश की बूँदों ने दिल के साथ ll
उलझे उलझे केशे भीगे भीगे आँचल की करताल l
मानों दो अलग अलग राहें ढ़लने एक साँचे तैयार ll
ग़ज़ल जुगलबंदी के साज झांझर भी थिरके नाच l
अर्ध चाँद और भी निखर आया सुन बारिश की ताल ll
ताबीज बनी थी जो आयतें उस शरद पूनम की रात l
कर अधर अंश मौन महका गयी अश्वगंधा बयार ll
शरारतों की बगावत थी वो रूमानी साँझ l
शहनाई धुन घुल गयी चूडियों की बारात ll
काश थम जाती वो करवटें बदलती साँस l
मिल जाती दो लहरें एक संगम तट समाय ll
रूह से रूह का था यह रूहानी अहसास l
मौसीक़ी से जुदा ना था बारिश का अंदाज ll
सुन सावन के पतझड़ की रागिनी आलाप l
ख़त लिख भेजे बारिश की बूँदों ने दिल के साथ ll
सदैव की तरह लेखनी ने कोमलकांत शब्दावली में सृजन को सुन्दर आयाम दिया है ।भावपूर्ण कृति ।
ReplyDeleteआदरणीया मीना दीदी जी
Deleteह्रदय तल से आपका आभार, आपका प्रोत्साहन ही सही मायने में मेरी लेखनी का ऊर्जा स्त्रोत हैं
सुन सावन के पतझड़ की रागिनी आलाप l
ReplyDeleteख़त लिख भेजे बारिश की बूँदों ने दिल के साथ ll
बहुत ही सुन्दर , भावपूर्ण सृजन।
वाह!!!
आदरणीया सुधा दीदी जी
Deleteह्रदय तल से आपका आभार, आपका प्रोत्साहन ही सही मायने में मेरी लेखनी का ऊर्जा स्त्रोत हैं
सुन्दर भावों की रंगोली
ReplyDeleteआदरणीया विभा दीदी जी
Deleteह्रदय तल से आपका आभार, आपका प्रोत्साहन ही सही मायने में मेरी लेखनी का ऊर्जा स्त्रोत हैं
सुंदर भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteआदरणीया जिज्ञासा दीदी जी
Deleteह्रदय तल से आपका आभार, आपका प्रोत्साहन ही सही मायने में मेरी लेखनी का ऊर्जा स्त्रोत हैं
बहुत सुंदर भावों से सजी हुई रचना वैसे भी आपकी लेखनी अलग अंदाज की है, बहुत शुभकामनाएँ आदरणीय ।
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