सुन सावन के पतझड़ की रागिनी आलाप l
ख़त लिख भेजे बारिश की बूँदों ने दिल के साथ ll
उलझे उलझे केशे भीगे भीगे आँचल की करताल l
मानों दो अलग अलग राहें ढ़लने एक साँचे तैयार ll
ग़ज़ल जुगलबंदी के साज झांझर भी थिरके नाच l
अर्ध चाँद और भी निखर आया सुन बारिश की ताल ll
ताबीज बनी थी जो आयतें उस शरद पूनम की रात l
कर अधर अंश मौन महका गयी अश्वगंधा बयार ll
शरारतों की बगावत थी वो रूमानी साँझ l
शहनाई धुन घुल गयी चूडियों की बारात ll
काश थम जाती वो करवटें बदलती साँस l
मिल जाती दो लहरें एक संगम तट समाय ll
रूह से रूह का था यह रूहानी अहसास l
मौसीक़ी से जुदा ना था बारिश का अंदाज ll
सुन सावन के पतझड़ की रागिनी आलाप l
ख़त लिख भेजे बारिश की बूँदों ने दिल के साथ ll