रंगों की प्रीत ने घोली हीना सी ऐसी मदमाती सुगंध चाल में l
केशों में गुँथी वेणी भी थिरक उठी इसके ही रंगों साज में ll
चंद्र शून्य भी भींग इसकी बैजन्ती के कर्ण ताल में l
लहरा रही कुदरत प्यासे मरुधर मृगतृष्णा ताल में ll
इन्द्रधनुषी रंग बिखराती लाली बिंदी माथे सजी l
बाँसुरी सी बजा रही समंदर ख्यालों अरमान में ll
खनखन करती चूडिय़ां सम्भाल रही ओढ़नी डोर साथ में l
राग सरगम बरस रही इनके रंगें इशारों छुपी जो साथ में ll
चढी खुमारी रंगों की ऐसी फागुन के फाग में l
चाँद भी रंग आया डफली की मीठी थाप में ll
मुरीद अधर रंग सहेजे जिस कोकिल कंठी राग के l
रंग गयी चुपके से वो मुझे अपने ही रंगों रुखसार में ll
गुलाल गुलाब के बिखरते रंगों होली जज्बात में l
सांवला रंग भी निखर आया साँसों के रंगों रास में ll