उलझन एक साँसों बीच चाँद क्यों अधूरा सितारों बीच l
मेहरम हवाओं आँचल बीच दाग क्यों चाँद माथे बीच ll
फलसफा कुदरत का ताबीज बन डोरे डाले आँखों बीच l
अनोखा स्वांग रचा रखा कायनात ने चाँद के माथे बीच ll
कभी अमावस की परछाई कभी ग्रहण की गहराई बीच l
नज़र कजरी बन आती ठहरी धड़कनों की अर्ध चाँद बीच ll
अलाव सी तपती मृगतृष्णा का आलाप झांझर बीच l
सूखौ रही कल कल करती नदियां संगीत सागर बीच ll
परखी बादलों ने जौहरी सी पनघट काया बदलती रूह बीच l
तस्वीर इस मंजर की इनायतॅ आयतें लिख रही चाँद बीच ll
बेचैन अधीर मन गुमशुदा करवट बदलती रातों बीच l
पूछ रहा खुद से क्यों खो गया मेरा चाँद बदरी बीच ll
बहुत सुंदर
ReplyDeleteआदरणीया दीदी जी
Deleteह्रदय तल से आपका आभार, आपका प्रोत्साहन ही सही मायने में मेरी लेखनी का ऊर्जा स्त्रोत हैं
सुन्दर शिल्प में गुँथी अत्यंत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteआदरणीया मीना दीदी जी
Deleteह्रदय तल से आपका आभार, आपका प्रोत्साहन ही सही मायने में मेरी लेखनी का ऊर्जा स्त्रोत हैं
बहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआदरणीय आलोक भाई साब
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद