सप्तरंगी तरंगें थिरकती जिन बाँसुरी शहनाई की धुन l
निजामते पुकार लायी फिर उन छेड़खानियां की रूह ll
आँधियों से जिसकी जर्रा जर्रा महका करता था कभी l
संवरने लगी वो आज फिर सुन दिल दस्तको॔ की धुन ll
सिलसिला दो हसीन ख़यालात खिलते गुलाब जज्बातों का l
एक मौन स्वीकृति खुशमिजाज आलिंगन करती हवाओं का ll
अर्ज़ बड़ा ही मासूम था इसकी उन अतरंगी अदाओं में l
तर्ज़ में जिसकी सितारें थे हर एक दिल्लगी इशारे में ll
मिलन गुलदस्ता ख्वाब बना था जिस खत का कभी l
अधूरा वो खत आज भी पड़ा था उसी किताब बीच ll
तराश नियति ने सजाये दो अलग अलग गुलदानों में l
मुरझा गये गुलाब दोनों जुदा हो अपनी ही साँसों से ll
आज फिर अचानक खिलखिलायी जो यादों की सुनहरी धूप l
छू गयी फिर से उन नादान छेड़खानीयों की मीठी सी धुन ll
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteआदरणीया मीना दीदी जी
Deleteह्रदय तल से आपका आभार, आपका प्रोत्साहन ही सही मायने में मेरी लेखनी का ऊर्जा स्त्रोत हैं
मधुर शब्दों की महकती सी धुन
ReplyDeleteआदरणीया अनीता दीदी जी
Deleteह्रदय तल से आपका आभार, आपका प्रोत्साहन ही सही मायने में मेरी लेखनी का ऊर्जा स्त्रोत हैं
अर्ज़ बड़ा ही मासूम था इसकी उन अतरंगी अदाओं में l
ReplyDeleteतर्ज़ में जिसकी सितारें थे हर एक दिल्लगी इशारे में ll
हर दिल्लगी को संभाले रखा है दिल में।
उसकी हर अतरंगी अदाएं आज भी धड़कती हैं मेरे सीने में।।
आदरणीया रूपा दीदी जी
Deleteह्रदय तल से आपका आभार, आपका प्रोत्साहन ही सही मायने में मेरी लेखनी का ऊर्जा स्त्रोत हैं
मिलन गुलदस्ता ख्वाब बना था जिस खत का कभी l
ReplyDeleteअधूरा वो खत आज भी पड़ा था उसी किताब बीच
बहुत सुन्दर भावपूर्ण ...
आदरणीया सुधा दीदी जी
Deleteह्रदय तल से आपका आभार, आपका प्रोत्साहन ही सही मायने में मेरी लेखनी का ऊर्जा स्त्रोत हैं