उलझन एक साँसों बीच चाँद क्यों अधूरा सितारों बीच l
मेहरम हवाओं आँचल बीच दाग क्यों चाँद माथे बीच ll
फलसफा कुदरत का ताबीज बन डोरे डाले आँखों बीच l
अनोखा स्वांग रचा रखा कायनात ने चाँद के माथे बीच ll
कभी अमावस की परछाई कभी ग्रहण की गहराई बीच l
नज़र कजरी बन आती ठहरी धड़कनों की अर्ध चाँद बीच ll
अलाव सी तपती मृगतृष्णा का आलाप झांझर बीच l
सूखौ रही कल कल करती नदियां संगीत सागर बीच ll
परखी बादलों ने जौहरी सी पनघट काया बदलती रूह बीच l
तस्वीर इस मंजर की इनायतॅ आयतें लिख रही चाँद बीच ll
बेचैन अधीर मन गुमशुदा करवट बदलती रातों बीच l
पूछ रहा खुद से क्यों खो गया मेरा चाँद बदरी बीच ll