बेईमान लम्हों की हसीन नादान गुस्ताखियाँ l
कर गयी ऐसी मीठी मीठी दखलअन्दाज़िया ll
शरमा तितली सी वो कमसिन सी पंखुड़ियां l
रंग गयी गुलमोहर उस चाँद की परछाइयाँ ll
सुनहरी ढलती साँझ की मधुर लालिमा जिसकी l
संदेशा गुनगुना जाती यादों सिमटती रातों का ll
अक्सर दस्तक देती चिलमन की वो शोखियाँ l
जुड़ी थी जिससे कुछ अनजाने पलों की दोस्तियाँ ll
मेहरबाँ थी अजनबी राहें भटकती मृगतृष्णा बोलियाँ l
बन्ध गयी थी जिनसे इस अनछुए अकेलेपन की डोरियाँ ll
स्पंदन एक मखमली सा था इनकी फ़िज़ाओं हवाओं में l
इत्र सा महका जाती आल्हादित मन अपनी गुस्ताखियों से ll