Sunday, January 8, 2023

गुस्ताखियाँ

बेईमान लम्हों की हसीन नादान गुस्ताखियाँ l

कर गयी ऐसी मीठी मीठी दखलअन्दाज़िया ll


शरमा तितली सी वो कमसिन सी पंखुड़ियां l

रंग गयी गुलमोहर उस चाँद की परछाइयाँ ll


सुनहरी ढलती साँझ की मधुर लालिमा जिसकी l

संदेशा गुनगुना जाती यादों सिमटती रातों का ll


अक्सर दस्तक देती चिलमन की वो शोखियाँ l

जुड़ी थी जिससे कुछ अनजाने पलों की दोस्तियाँ ll


मेहरबाँ थी अजनबी राहें भटकती मृगतृष्णा बोलियाँ l

बन्ध गयी थी जिनसे इस अनछुए अकेलेपन की डोरियाँ ll


स्पंदन एक मखमली सा था इनकी फ़िज़ाओं हवाओं में l

इत्र सा महका जाती आल्हादित मन अपनी गुस्ताखियों से ll