कोहिनूर सी दिलकशी थी जिसकी बातों में l
महजबीं कायनात थी वो इन अल्फाजों की ll
वसीयत बन गयी थी वो इस नादान रूह की l
संभाली थी जिसे किसी महफ़ूज़ विरासत सी ll
हँसी लिये वो मुकाम उस लालिमा रुखसार का l
संदेशा गीत सुनाती मेघों पंखुड़ियां शबाब का ll
परखी जिन पारखी निगाहों ने इस नायाब को l
मृगतृष्णा मुराद बन गयी उस जीने की राह को ll
इस धूप की साँझ छाँव बनी थी जो कभी l
बूँद उस ओस की संगिनी सी गुलजार थी ll
हीना सी महका जाती यह अटारी फिर उस गली l
याद आ जाती वो मासूम अठखेलियाँ जब कभी ll