कोहिनूर सी दिलकशी थी जिसकी बातों में l
महजबीं कायनात थी वो इन अल्फाजों की ll
वसीयत बन गयी थी वो इस नादान रूह की l
संभाली थी जिसे किसी महफ़ूज़ विरासत सी ll
हँसी लिये वो मुकाम उस लालिमा रुखसार का l
संदेशा गीत सुनाती मेघों पंखुड़ियां शबाब का ll
परखी जिन पारखी निगाहों ने इस नायाब को l
मृगतृष्णा मुराद बन गयी उस जीने की राह को ll
इस धूप की साँझ छाँव बनी थी जो कभी l
बूँद उस ओस की संगिनी सी गुलजार थी ll
हीना सी महका जाती यह अटारी फिर उस गली l
याद आ जाती वो मासूम अठखेलियाँ जब कभी ll
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteआदरणीया मीना दीदी जी
Deleteह्रदय तल से आपका आभार, आपका प्रोत्साहन ही सही मायने में मेरी लेखनी का ऊर्जा स्त्रोत हैं
सुंदर, नायाब अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteआदरणीया जिज्ञासा दीदी जी
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
बहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteआदरणीया दीदी जी
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
वाह!!!
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर ।
आदरणीया सुधा दीदी जी
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
बूंद उस ओस की संगिनी सी...वाह, बढ़िया रचना है ्
ReplyDeleteआदरणीया गिरिजा दीदी जी
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
मोहक शिल्प में गढी गई और भावनाओं को विस्तार देती हुई उनकी नयी रचना👌👌
ReplyDeleteआदरणीया रेणु दीदी जी
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (8-12-22} को "घर बनाना चाहिए"(चर्चा अंक 4624) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
------------
कामिनी सिन्हा
आदरणीया कामिनी दीदी जी
Deleteमेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिए तहे दिल से आपका आभार
भावपूर्ण सुंदर सृजन
ReplyDeleteआदरणीया अनीता दीदी जी
Deleteमेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिए तहे दिल से आपका आभार