मौन ही वह सबसे सुंदर अहसास था l
पल जो उसके लबों से होकर गुजरा था ll
उफनता सागर भी वो ठहर गया था l
खुशबु को इसकी जब मैंने छुआ था ll
स्पर्श हृदय मन ने किया था जिस मौन को l
अल्फाज़ आहटें बिखर गयी थी उस पल को ll
मौन वाणी पल्लवित सुगंध महका अंबर को l
आतुर कर गयी थीं छुने उन उड़ते परिंदों को l
समेटा इन मौन अक्षरों को सदियों बाद फिर l
प्रेम कपोल प्रस्फुटित हो गया एक बार फिर ll
धूप छाँव सी दस्तक देती किंवदंतियों इन मौनौ की l
शब्द सार नक्काशी तराशती फिर उन्हीं अहसासों की ll
अधूरी रह गयी थी चेतना जिन अल्फाजों की l
मौन उसकी लिख गयी नयी इबादत जज़्बातों की ll
मौन उसकी लिख गयी नयी इबादत जज़्बातों की ll
मौन उसकी लिख गयी नयी इबादत जज़्बातों की ll