टाँक दिया रूह को उस पीपल की शाखों पर l
दर्द कभी रिस्ता था जिसकी कोमल डालों से ll
सावन में भी पतझड़ बातों से मुरझा गया पीपल l
सूना हो गया चौराहा उजड़ गया पीपल राहों से ll
फिर भी समझा ना सका दिल वैतरणी को l
गुलाब वो बना था किसी और के आँगन को ll
गवाह थी दरिया किनारे बरगद की वो लटें l
गुजरी थी कई शामें जिसके हिंडोले मोजों में ll
बदले बदले रूप वो चाँद नजर क्यूँ आ जाता हैं l
पुराने खतों नूर उसका ही नजर क्यूँ आ जाता हैं ll
संग इसके बीते थे जो कभी हसीन अतरंगी पल l
टिसन देते आज भी याद आते जब कभी वो पल ll
बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteआदरणीया अभिलाषा दीदी जी
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
फिर भी समझा ना सका दिल वैतरणी को l
ReplyDeleteगुलाब वो बना था किसी और के आँगन को ll
वाह!!!
सुन्दर एवं भावपूर्ण ।
आदरणीया सुधा दीदी जी
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
बहुत सुंदर सराहनीय रचना।
ReplyDeleteआदरणीया जिज्ञासा दीदी जी
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
भवपूर्ण सृजन
ReplyDeleteआदरणीया संगीता दीदी जी
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
भावपूर्ण भावाभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteआदरणीया मीना दीदी जी
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
अतीत के पन्नों को कुछ इस कदर कुरेद दिया,
ReplyDeleteमानों दिल की बातों को लेखनी से उकेर दिया!!
बहुत खूब...
आदरणीया रूपा दीदी जी
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद