Monday, October 10, 2022

वैतरणी

टाँक दिया रूह को उस पीपल की शाखों पर l

दर्द कभी रिस्ता था जिसकी कोमल डालों से ll


सावन में भी पतझड़ बातों से मुरझा गया पीपल l 

सूना हो गया चौराहा उजड़ गया पीपल राहों से ll


फिर भी समझा ना सका दिल वैतरणी को l

गुलाब वो बना था किसी और के आँगन को ll 


गवाह थी दरिया किनारे बरगद की वो लटें l

गुजरी थी कई शामें जिसके हिंडोले मोजों में ll


बदले बदले रूप वो चाँद नजर क्यूँ आ जाता हैं l  

पुराने खतों नूर उसका ही नजर क्यूँ आ जाता हैं ll


संग इसके बीते थे जो कभी हसीन अतरंगी पल l

टिसन देते आज भी याद आते जब कभी वो पल ll

12 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना

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    1. आदरणीया अभिलाषा दीदी जी
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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  2. फिर भी समझा ना सका दिल वैतरणी को l

    गुलाब वो बना था किसी और के आँगन को ll
    वाह!!!
    सुन्दर एवं भावपूर्ण ।

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    1. आदरणीया सुधा दीदी जी
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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  3. बहुत सुंदर सराहनीय रचना।

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    1. आदरणीया जिज्ञासा दीदी जी
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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    1. आदरणीया संगीता दीदी जी
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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  5. भावपूर्ण भावाभिव्यक्ति ।

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    1. आदरणीया मीना दीदी जी
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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  6. अतीत के पन्नों को कुछ इस कदर कुरेद दिया,
    मानों दिल की बातों को लेखनी से उकेर दिया!!

    बहुत खूब...

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    1. आदरणीया रूपा दीदी जी
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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