Thursday, September 22, 2022

दिलचस्प

दर्द कुछ सहमी फ़िज़ाओं की आगोश में था l

कुछ कुछ तेरी पनाहों की सरगोशियों में था ll


आफताब उस सहर का भी खोया खोया था l

निगाहों में तेरी जिस तस्वीर का घर टूटा था ll


ख़्यालातों मंजर अश्कों का दरिया सैलाब बन जो गुजरा था l

मुख़्तलिफ़ फिर भी हुई नहीं बंदिशें रंजिशें इनकी राहों से तेरी ll


एक सौदा सा था मेरी रूहानियत और तन्हाइयों के बीच l

निकाह तेरी निगहबानी का मुक़र्रर हुआ था जिस दिन ll


दिलचस्प थी इस रूमानियत जुदाई आलम की वो हर घड़ी l

किश्तों में सिमटी किस्सों में उलझी थी इसकी वो मासूम कड़ी ll


दफन थी यादें सारी कही जैसे मय्यत कफन लिबास में खोई खोई l

शरीक ना हुई वो इनायतें भी इसके जनाजे अंजुमन सफर साथ भी ll

2 comments:

  1. क्या बात है....लाजवाब

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    1. आदरणीया रूपा दीदी जी
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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