Saturday, September 17, 2022

मिथ्या

कुछ अनकही बातों दरिया का जिक्र फिर कभी हो ना पाया l

मौन मकबरे सा कभी खुद से भी यह गुफ़्तगू कर ना पाया ll


तारतम्य पिरो ना पाया अपनी मोजों और किनारों में l

सामंजस्य अधूरा रह गया था इसके बहते संवादों में ll


आवारा साँझ सी बहती इन मझधार लहरों तरंगों पर l

अस्त होती लालिमा नाच रही जैसे व्यथित सी होकर ll


आवाज दूँ कैसे आलिंगन करूँ कैसे उस मौन को l

अहसास जिसका जुदा हो ना पाया इस वज़ूद से ll


आहिस्ते आहिस्ते टूटती इन बेज़ान दरख्तों में l

एक कंपकंपी सी थी उन मौन स्तब्ध पलों में ll


मिथ्या थी वो अनजानी सी आधी अधूरी मेरी मुलाकातें l

कह के भी कह ना पायी जो अपने मौन जज्बातों की बातें ll


दस्तक देता रह गया इसकी भूली सरहद आवाजों को l

खोई हुई जैसे किसी मौन शून्य में पसरी आहटों को ll

12 comments:

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    1. आदरणीय नितीश भाई साब
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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  2. आधी अधूरी मुलाकातों को कुछ लोग दिल से लगा लेते
    और कुछ इन मुलाकातों को भुलाकर जिंदगी में आगे बढ़ जाते...

    बहुत सुंदर रचना 👌👌

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    1. आदरणीया रूपा दीदी जी
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(१९-०९ -२०२२ ) को 'क़लमकारों! यूँ बुरा न मानें आप तो बस बहाना हैं'(चर्चा अंक -४५५६) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. आदरणीया अनीता दीदी जी
      मेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिए तहे दिल से आपका आभार

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  4. मौन मकबरे सा... प्रभावी बिंब। सुन्दर सृजन।

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    1. आदरणीया अमृता दीदी जी
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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  5. बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति।

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    1. आदरणीया जिज्ञासा दीदी जी
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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  6. कह के भी कह ना पायी जो अपने मौन जज्बातों की बातें ll
    वाह!!!!
    बहुत खूब..लाजवाब

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    1. आदरणीया सुधा दीदी जी
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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