कुछ अनकही बातों दरिया का जिक्र फिर कभी हो ना पाया l
मौन मकबरे सा कभी खुद से भी यह गुफ़्तगू कर ना पाया ll
तारतम्य पिरो ना पाया अपनी मोजों और किनारों में l
सामंजस्य अधूरा रह गया था इसके बहते संवादों में ll
आवारा साँझ सी बहती इन मझधार लहरों तरंगों पर l
अस्त होती लालिमा नाच रही जैसे व्यथित सी होकर ll
आवाज दूँ कैसे आलिंगन करूँ कैसे उस मौन को l
अहसास जिसका जुदा हो ना पाया इस वज़ूद से ll
आहिस्ते आहिस्ते टूटती इन बेज़ान दरख्तों में l
एक कंपकंपी सी थी उन मौन स्तब्ध पलों में ll
मिथ्या थी वो अनजानी सी आधी अधूरी मेरी मुलाकातें l
कह के भी कह ना पायी जो अपने मौन जज्बातों की बातें ll
दस्तक देता रह गया इसकी भूली सरहद आवाजों को l
खोई हुई जैसे किसी मौन शून्य में पसरी आहटों को ll
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteआदरणीय नितीश भाई साब
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
आधी अधूरी मुलाकातों को कुछ लोग दिल से लगा लेते
ReplyDeleteऔर कुछ इन मुलाकातों को भुलाकर जिंदगी में आगे बढ़ जाते...
बहुत सुंदर रचना 👌👌
आदरणीया रूपा दीदी जी
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(१९-०९ -२०२२ ) को 'क़लमकारों! यूँ बुरा न मानें आप तो बस बहाना हैं'(चर्चा अंक -४५५६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आदरणीया अनीता दीदी जी
Deleteमेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिए तहे दिल से आपका आभार
मौन मकबरे सा... प्रभावी बिंब। सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteआदरणीया अमृता दीदी जी
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteआदरणीया जिज्ञासा दीदी जी
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
कह के भी कह ना पायी जो अपने मौन जज्बातों की बातें ll
ReplyDeleteवाह!!!!
बहुत खूब..लाजवाब
आदरणीया सुधा दीदी जी
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद