एक उम्र दहलीज का फासला था मेरी इश्क गुस्ताखी में l
जब कभी आईना पूछता हौले से परदा कर लेता उससे ll
वो सफ़ेदी तलाशती फिरती मेरे रुखे बिखरे बालों में l
भूला दुनिया सुकून से मैं सो जाता उसकी बाहों में ll
तबस्सुम उसकी ढ़क जाती झुर्रियां मेरे उम्र चेहरे की l
मोहलत मिल जाती जैसे साँसों को और धड़कने की ll
उस हिजाब वाली अंतरंगी के हम तो थे ऐसे मासूम कायल l
खुदग़र्ज़ी थी खिताबों से रंगे थे फिर भी खिजाबों में आकर l
दुआएँ आखरी फिजां इश्क के उन ताउम्र फासलों की l
मय्यत जनाजे भी सहारा मिले उसके ही कांधों का आकर ll
वाह !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अल्फ़ाज़ों में सजी लाज़वाब भावाभिव्यक्ति ।
आदरणीया मीना दीदी जी
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआदरणीय आलोक भाई साब
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
क्या कहने, लाजवाब!!
ReplyDeleteआदरणीया रूपा दीदी जी
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
बहुत खूब जनाब !
ReplyDeleteआदरणीया नूपुरं दीदी जी
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
बहुत ही सुन्दर रचना हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteआदरणीया अभिलाषा दीदी जी
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
बेहद खूबसूरत गुस्ताखी।
ReplyDeleteआदरणीया अमृता दीदी जी
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
बहुत खूब
ReplyDeleteआदरणीया संगीता दीदी जी
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद