Thursday, September 8, 2022

गुस्ताखी

एक उम्र दहलीज का फासला था मेरी इश्क गुस्ताखी में l

जब कभी आईना पूछता हौले से परदा कर लेता उससे ll


वो सफ़ेदी तलाशती फिरती मेरे रुखे बिखरे बालों में l

भूला दुनिया सुकून से मैं सो जाता उसकी बाहों में ll


तबस्सुम उसकी ढ़क जाती झुर्रियां मेरे उम्र चेहरे की l

मोहलत मिल जाती जैसे साँसों को और धड़कने की ll


उस हिजाब वाली अंतरंगी के हम तो थे ऐसे मासूम कायल l

खुदग़र्ज़ी थी खिताबों से रंगे थे फिर भी खिजाबों में आकर l


दुआएँ आखरी फिजां इश्क के उन ताउम्र फासलों की l

मय्यत जनाजे भी सहारा मिले उसके ही कांधों का आकर ll

14 comments:

  1. वाह !!
    बहुत सुन्दर अल्फ़ाज़ों में सजी लाज़वाब भावाभिव्यक्ति ।

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    1. आदरणीया मीना दीदी जी
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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    1. आदरणीय आलोक भाई साब
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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  3. क्या कहने, लाजवाब!!

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    1. आदरणीया रूपा दीदी जी
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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    1. आदरणीया नूपुरं दीदी जी
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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  5. बहुत ही सुन्दर रचना हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

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    1. आदरणीया अभिलाषा दीदी जी
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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  6. बेहद खूबसूरत गुस्ताखी।

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    1. आदरणीया अमृता दीदी जी
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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    1. आदरणीया संगीता दीदी जी
      सुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद

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