दर्द कुछ सहमी फ़िज़ाओं की आगोश में था l
कुछ कुछ तेरी पनाहों की सरगोशियों में था ll
आफताब उस सहर का भी खोया खोया था l
निगाहों में तेरी जिस तस्वीर का घर टूटा था ll
ख़्यालातों मंजर अश्कों का दरिया सैलाब बन जो गुजरा था l
मुख़्तलिफ़ फिर भी हुई नहीं बंदिशें रंजिशें इनकी राहों से तेरी ll
एक सौदा सा था मेरी रूहानियत और तन्हाइयों के बीच l
निकाह तेरी निगहबानी का मुक़र्रर हुआ था जिस दिन ll
दिलचस्प थी इस रूमानियत जुदाई आलम की वो हर घड़ी l
किश्तों में सिमटी किस्सों में उलझी थी इसकी वो मासूम कड़ी ll
दफन थी यादें सारी कही जैसे मय्यत कफन लिबास में खोई खोई l
शरीक ना हुई वो इनायतें भी इसके जनाजे अंजुमन सफर साथ भी ll