Tuesday, August 2, 2022

निःशब्द

कहाँ से चला था कौन सी डगर का मुकाम था वो l

राहों की अधीर पगडण्डियाँ का सैलाब सा था जो ll


टूटे खंडहरों का आशियाँ था शायद जैसे कोई l

बिखरे ख्वाबों की लूटी अस्मत थी जैसे कोई ll


झंझोर था एक रुकी हुई दबी सी हल्की आहट का कहीं l

दस्तक दे रही जो निःशब्द अहसासों को कभी कभी ll


व्याकुल पपहिया छुपे पैगाम भेज रहा था जैसे कोई l

शब्द फिर भी पास ना थे उन सूखे हुए लबों के कहीं ll


बैचैन सावन की पुरवाई का रुख जुदा था खुद से कहीं कहीं l

रौनक ऐ महफिल का चाँद तन्हा खोया हुआ था और कहीं ll


इतनी भर साँसे अब तलक भी जो थी जिंदा बची खुची l

एक संदेशे इंतजार में धड़का जाती थी यह दिल कभी कभी ll