छिपाने अश्कों याराना बारिशों से मैंने कर ली l
मेघों की बिखरती बूँदों से दर्द भी साँझा कर ली ll
शिकवा रहे ना खुद से किसी बेरुखी का l
काले बादलों में हबीबी की नूर तराश ली ll
हौले से अधूरे ख्वाब बेच जाती नींद पलकों में l
कोलाहल सागर मल्हारों यही थी जो छुपा लाती ll
रुखसत होने इस अश्रु व्यंग परिहास ज़ख्मों से l
बूँदों की फुसफुसाहट ताबीर इसकी बना डाली ll
फिदा बारिशों के इस संगम मनुहार पर l
धारा अश्कों मेहरान घटायें सिमट आती ll