सुन उसके पैरों की आहट हवाओं से मैं बात करते चला l
छाँव के साये महफ़ूज़ उसे रखने बदरा तुम संग लेते आना ll
तपिश की चुभन छाले ना पड़े उनके कदमों में l
उनके पैरों निशाँ पर तुम बारिश बन छा जाना ll
सरगम उसके पायलों की मिल रेत कणों से l
बासंती मृदंग रंग घोल रही उसके कर्णफूलों से ll
आना तुम भी मिलने मुझसा पागल दीवाना बनके l
आँचल आँधियों का पहना रूह मेरी बन ठहर जाना ll
सगुन की रंगों भरी इन मुलाकात बरसातों में l
मेहरम मेरी बन धड़कनें उनकी बन रच जाना ll
ए हवा मेहरबां बन तू मेरी इस सफर के हमसफर l
मिलन इस पहर आलिंगन खुशबु बनके छा जाना ll
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 2.6.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4449 में दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति चर्चाकारों का हौसला बढ़ाएगी
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
आदरणीय दिलबागसिंह भाई साब
Deleteमेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिए तहे दिल से आपका आभार
ख़ूबसूरत रूमानी कविता !
ReplyDeleteआदरणीय गोपेश भाई साब
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
बेहद खूबसूरत रचना
ReplyDeleteवाह
आदरणीय भाई साब
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
बहुत सुन्दर ! भावपूर्ण रचना ।
ReplyDeleteआदरणीय आतिश भाई साब
Deleteसुंदर शब्दों से हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद