सरल थी वो ओस की उन अनछुई शबनमी बूँदों सी l
इतराती अठखेलियाँ विलुप्त हो जाती पवन वेगों सी ll
चिंतन मनन जब जब करता उसे अल्फाजों पिरो सीने की l
लब मौन तब तब सिल जाते उसके गुलाब पराग कणों सी ll
नाम जिनका उकेरा था सागर सी मचलती जल तरंगों पर l
दरिया बन समा गयी वो मेरे अधूरे क्षितिज अश्रु बूँदों पर ll
संजोग तारतम्य अक्षरों चयन बीच कभी हुए नहीं l
संदेशों में भी बैरंग खत कभी हमसे अता हुए नहीं ll
खुमारी इसकी मीठी मीठी आबो हवा बारिश बारातों की l
मुक्तक पतंग उड़ा रही परिंदों सी रंगे दिल आसमानों की ll
उतरी जब यह नायाब चित्रकारी दर्पणों के सूने आगोश में l
विस्मित चकित खुदा भी ढल खो गया इसके प्रेम आगोश में ll