शिवालय तू मेरे ध्यानमग्न महताब का l
कंठ विष सा नीला इसके आसमान का ll
उलझी बिखरी केश लट जटाएं समेटी l
अनगिनत सी अश्रुधारा सागर वेग का ll
तांडव सा रौद्र रूप दमक रहा इसका l
नाच रहा क्षितिज मन महाकाल का ll
मस्तक तिलक त्रिशूल तेज बना इसने l
श्रृंगार रचा रखा हिमालय ताज का ll
भस्म धूनी रमाये जलती आधी साँझ का l
बज रहा डमरू इसके ही शिव जाप का ll
बज रहा डमरू इसके ही शिव जाप का l
बज रहा डमरू इसके ही शिव जाप का ll