Monday, May 23, 2022

ll ज्ञान व्यापी शिव ll

शिवालय तू मेरे ध्यानमग्न महताब का l
कंठ विष सा नीला इसके आसमान का ll

उलझी बिखरी केश लट जटाएं समेटी l
अनगिनत सी अश्रुधारा सागर वेग का ll

तांडव सा रौद्र रूप दमक रहा इसका l
नाच रहा क्षितिज मन महाकाल का ll

मस्तक तिलक त्रिशूल तेज बना इसने l
श्रृंगार रचा रखा हिमालय ताज का ll

भस्म धूनी रमाये जलती आधी साँझ का l
बज रहा डमरू इसके ही शिव जाप का ll

बज रहा डमरू इसके ही शिव जाप का l
बज रहा डमरू इसके ही शिव जाप का ll

Thursday, May 19, 2022

ज़ख्म

इन तन्हाइयों की अब कोई सहर नहीं l
साँझ सी डूबती धड़कनों में ख्वाब नहीं ll

काफिर की अनसुनी फ़रियाद थी जो कभी l
विलीन हो गयी पत्थरों के बीच आज कही ll

रूमानी थी जो शामें उसके नूर की गली गली l
मशहूर हैं वो आज सुरा की बदनाम गली गली ll

महरूम ख़ामोशियों ने तराशा था जो मंजर l
उस मोड़ पर तन्हा अधूरा खड़ा था बचपन ll

मशगूल थी मौजे अम्बर आस पास में l 
प्यासी थी फिर भी बूंदे अपने आप में ll

जुदा होना चाहा था ख़ुद ने जिस रुसवाई से l
लिपटा हुआ खड़ा था उसकी ही परछाई में ll

सौदा जिस रूह से इस तन का कभी हुआ था l
ज़ख्म उसका इस सीने से कभी जुदा हुआ नहीं ll

Thursday, May 12, 2022

बहाना

सोचा दफ़न कर आता हूँ यादों की उन बंदिशों को l
बिन बुलाएँ चलती आती जो कुरेदने ख्यालों को ll

बटोरी चुपके से यादें उन पुरानी किताबों के अंदर से l 
महफूज बेखबर सो रही थी जो खतों के लिहाफ अंदर ll 

उम्र दहलीज छू ना पायी थी उन यादों को अब तलक l
दुओं के ताबीज़ में लिपटी सिमटी थी इनकी रहगुजर ll

बेईमान सी कशमकश थी एक मन के अंदर ही अंदर l
क्यों ना मकबरा बना दूँ इसके दीदार के गुजरे सफर ll

फैसला होता कैसे दिलों की कशिश के बहते समंदर l
यादें ही तो एक बहाना थी छूने मधुशाला के समंदर ll

Monday, May 2, 2022

रूह

मजहब रंग एक था मेरी मोहब्बत का l
रोजा वो रखती इसकी सलामती का ll

इफ्तारी मैं करता उसके चाँद दीदार से l
कबूल हो जाती मन्नतें कई एक साथ में ll

होली मेरी जलती जैसे दिवाली रोशन आस में l
रंगों सराबोर होती उसकी कंचन काया साथ में ll

मीरा थी वो मेरे दिल रास रचे इस मधुवन की l
सहज भाव झुक जाती देख साया मंदिर की  ll

नफासत इतनी भरी थी दोनों दिलों जान में l
दुआएं छलकती इनसे जैसे तारों आसमान से ll

सरका हिजाब मुस्काती जब वो कनखियों नाज से l
बाँसुरी सी धुन घुल जाती मेरी रुकी रुकी सांस में ll

मीठी मीठी नज्म थी वो इस दिल गालियां चौबारों की शान से l
ना मंदिर ना मस्जिद की रूह थी वो गीता कुरान की एक साथ मे ll