उलझी उलझी थी मोहब्बत मेरी उसके दिल की गली गली l
संगेमरमर सी ताज महल बन गयी वो यादों की गली गली ll
खुशनुमा हो जाते थे तरन्नुम के वो कुछ खास से पल l
छत पर जब नजर आ आती थी उसकी एक झलक ll
कसीदें उसके तारूफ में भेजा करते जब आसमाँ साथ में l
मेघों की लड़ियों भी सज जाती उसकी कर्णफूलें शान में ll
कलाई से बंधे धागों सी कोई कशिश थी इन चाहतों के बीच l
हथेलियों पर लिखी कोई इबादत थी जैसे इन लकीरों के बीच ll
करवटों की लिहाफ़ से हो जाती थी करारी तकरार सी l
चाँद जब जब उतर आता था मेरे झरोखे दालान भी ll
बड़ा मीठा सा रूमानी था कल्पनाशील का वो आशिकी मिजाज़ भी l
निभाने दस्तूर ख्यालों से निकल वो चले आते थे ख़्वाबों पास भी ll
अवदान उनकी उस मुस्कान का ही था मेरी उड़ानों के बीच l
जिक्र सिर्फ जिनकी आँखों का ही था मेरी किताबों के बीच ll
करवटों की लिहाफ़ से हो जाती थी करारी तकरार सी l///
ReplyDeleteकल्पना की ऊँची उड़ान बहुत प्रभावी है प्रिय मनोज जी। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।
आदरणीय दिलबाग भाई साहब
ReplyDeleteमेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिए आपका दिल से शुक्रिया l
आदरणीया रेणु दीदी जी
ReplyDeleteसुन्दर शब्दों से हौसला अफजाई के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया l
बहुत सुन्दर भावपूर्ण सृजन ।
ReplyDeleteआदरणीया मीना दीदी जी
Deleteसुन्दर शब्दों से हौसला अफजाई के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया l
कलाई से बंधे धागों सी कोई कशिश थी इन चाहतों के बीच l
ReplyDeleteहथेलियों पर लिखी कोई इबादत थी जैसे इन लकीरों के बीच.... वाह!बहुत सुंदर अनुज 👌
आदरणीया अनीता दीदी जी
Deleteसुन्दर शब्दों से हौसला अफजाई के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया l
करवटों की लिहाफ़ से हो जाती थी करारी तकरार सी l///
ReplyDeleteवाह!!!!
क्या बात..
आदरणीया सुधा दीदी जी
Deleteसुन्दर शब्दों से हौसला अफजाई के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया l