कल की वो रात बड़ी अकेली थी l
अक्स भी वो गुमशुदा लापता था ll
दीदार में जिसके ठहरी हुई रातें भी l
खामोशी से ढ़ल सी जाया करती थी ll
अक्सर ख्वाब बन जो आया करता था l
मंजर कल की रात का वो अधूरा सा था ll
आवाज दे पुकारूँ उसे इस आलम में कैसे l
दर्द में डूबे अल्फाजों से कशिश वो दूर थी ll
काश यह रात मुझे भी अपने में समा जाती l
तन्हा करवटों में थोड़ी सी नींद पिरो जाती ll
मगर बारिश की वो करुण भीगी भीगी रुन्दन l
मेघों की वो भयभीत कांपती सी थरथराहट ll
डरा रही थी अधखुली पलकों को ऐसे l
नाता ना जोड़ों इन परायी नींदों से ऐसे ll
चाँद वो जो अक्सर संग मेरे जगा करता था l
कल रात वो भी बिन सुलायें खो गया था ll
इस बैरंग आसमाँ में रंग जिसके भरा करते थे l
वो गुमनाम अक्स कल रात से गुमशुदा सा था ll
डरा रही थी अधखुली पलकों को ऐसे l
ReplyDeleteनाता ना जोड़ों इन परायी नींदों से ऐसे ll
हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति ।
आदरणीया मीना दीदी जी
Deleteसुन्दर अल्फाजों से हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया
कोमल भावों से सजी सुंदर रचना
ReplyDeleteआदरणीया अनीता दीदी जी
Deleteसुन्दर अल्फाजों से हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया
मन को छूती सुंदर रचना ।
ReplyDeleteआदरणीया जिज्ञासा दीदी जी
Deleteसुन्दर अल्फाजों से हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया
बहुत खूब ...
ReplyDeleteअच्छे शेर हैं किसी कहानी जैसे ...
आदरणीय दिगंबर भाई साहब जी
Deleteसुन्दर अल्फाजों से हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया
नाता ना जोड़ों इन परायी नींदों से ऐसे हृदयस्पर्शी बहुत दिन बाद आपके ब्लॉग पर आया ..बहुत अच्छा लगा
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