Tuesday, February 22, 2022

मोड़

उन अनछुए लावण्य लम्हों का जिक्र जब जब चला l
साँसे अनजानी थी धड़कनों से भ्रम सत्य हो चला ll

गुलदस्ते एक किनारे पे बैठा था पल सिरहाने से l
पतझड़ सा मौसम दस्तक दे रहा जैसे सावन में ll

धागे बिन अधूरी थी पर मोतियों की वो माला l
पिरो गुँथी नहीं जिसमें इसकी शबनमी काया ll

खोई स्मृतियों झाँक रही घूंघट के उन दौरों से l
पानी नहीं था जब बादलों की उफनती मौजों में ll

प्यासे प्यासे रुंधे कंठ आतुर थे तर जाने को l
मदिरालय दूर खड़ी बुला रही पास आने को ll

लकीरें खिंची थी दोनों ने दहलीज के दोनों छोरों पर l
हौले बिसरा गया मिलन साँसों का धड़कन मोड़ पर ll

हौले बिसरा गया मिलन साँसों का धड़कन मोड़ पर l
हौले बिसरा गया मिलन साँसों का धड़कन मोड़ पर ll

13 comments:

  1. बहुत सुंदर सृजन ।

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    1. आदरणीया मीना दीदी जी
      मेरी रचना पसंद करने के लिए दिल से शुक्रिया

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  2. वाह ... क्या बात है अच्छे शेर ...

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    1. आदरणीय दिगंबर भाई साहब
      मेरी रचना पसंद करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया

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  3. Replies
    1. आदरणीय यशवंत भाई साहब
      मेरी रचना पसंद करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया

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  4. धागे बिन अधूरी थी पर मोतियों की वो माला l
    पिरो गुँथी नहीं जिसमें इसकी शबनमी काया ,,,,,,, बहुत सुंदर सृजन, शुभकामनाएँ ।

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    1. आदरणीया मधुलिका दीदी जी
      मेरी रचना पसंद करने के लिए दिल से शुक्रिया

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    1. आदरणीया अमृता दीदी जी
      सुन्दर अल्फाजों से हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया

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  6. बहुत सुंदर सराहनीय सृजन ।

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    1. आदरणीया जिज्ञासा दीदी जी
      सुन्दर अल्फाजों से हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया

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  7. वाह ! बेहतरीन शायरी

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