उन अनछुए लावण्य लम्हों का जिक्र जब जब चला l
साँसे अनजानी थी धड़कनों से भ्रम सत्य हो चला ll
गुलदस्ते एक किनारे पे बैठा था पल सिरहाने से l
पतझड़ सा मौसम दस्तक दे रहा जैसे सावन में ll
धागे बिन अधूरी थी पर मोतियों की वो माला l
पिरो गुँथी नहीं जिसमें इसकी शबनमी काया ll
खोई स्मृतियों झाँक रही घूंघट के उन दौरों से l
पानी नहीं था जब बादलों की उफनती मौजों में ll
प्यासे प्यासे रुंधे कंठ आतुर थे तर जाने को l
मदिरालय दूर खड़ी बुला रही पास आने को ll
लकीरें खिंची थी दोनों ने दहलीज के दोनों छोरों पर l
हौले बिसरा गया मिलन साँसों का धड़कन मोड़ पर ll
हौले बिसरा गया मिलन साँसों का धड़कन मोड़ पर l
हौले बिसरा गया मिलन साँसों का धड़कन मोड़ पर ll
बहुत सुंदर सृजन ।
ReplyDeleteआदरणीया मीना दीदी जी
Deleteमेरी रचना पसंद करने के लिए दिल से शुक्रिया
वाह ... क्या बात है अच्छे शेर ...
ReplyDeleteआदरणीय दिगंबर भाई साहब
Deleteमेरी रचना पसंद करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया
बहुत बढ़िया सर!
ReplyDeleteआदरणीय यशवंत भाई साहब
Deleteमेरी रचना पसंद करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया
धागे बिन अधूरी थी पर मोतियों की वो माला l
ReplyDeleteपिरो गुँथी नहीं जिसमें इसकी शबनमी काया ,,,,,,, बहुत सुंदर सृजन, शुभकामनाएँ ।
आदरणीया मधुलिका दीदी जी
Deleteमेरी रचना पसंद करने के लिए दिल से शुक्रिया
सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteआदरणीया अमृता दीदी जी
Deleteसुन्दर अल्फाजों से हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया
बहुत सुंदर सराहनीय सृजन ।
ReplyDeleteआदरणीया जिज्ञासा दीदी जी
Deleteसुन्दर अल्फाजों से हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया
वाह ! बेहतरीन शायरी
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