हर रात खुली आँखों में जग जग के सोया करता हूँ l
एक चाँद के दीदार को पलकें खुली रखा करता हूँ ll
परिणय था पुतलियों का आसमाँ के जिस डगर से l
नयनों के तीर से घायल था ऐ परिंदा उस पनघट पर ll
तराशा जिस तरकश को हसीन ख्वाबों नजारों में l
परिणति हुई उसकी ढलती स्याह आधी रातों में ll
दृष्टि को लग गया मानो चंद्र ग्रहण सा कोई l
सृष्टि में जैसे दूसरा कमल और ना हो कहीं ll
मुस्तकबिल मेरा वाकिफ था इसकी भँवर गहराई से ll
तलाशता फिरा मुकाम फिर भी इसकी अँधेरी सच्चाई में l
परिचय जब हुआ पलकों का आँखों की उचटती नींदों से l
परिचित तब ही हुआ इसके दर्द भरे गुमनाम ठिकानों से ll
सम्भाल रखा हैं अहसान इन हसीं ख्यालातों के l
एहसास ताकि जिंदा रहे इन पलकों मुलाकातों के ll
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteआदरणीय सुशील भाई साहब जी
Deleteसुन्दर अल्फाजों से हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया
मुस्तकबिल मेरा वाकिफ था इसकी भँवर गहराई से ll
ReplyDeleteतलाशता फिरा मुकाम फिर भी इसकी अँधेरी सच्चाई में
बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण सृजन।
आदरणीया सुधा दीदी जी
Deleteसुन्दर अल्फाजों से हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया
ReplyDeleteपरिणय था पुतलियों का आसमाँ के जिस डगर से l
नयनों के तीर से घायल था ऐ परिंदा उस पनघट पर ll,,,,, बहुत सुंदर रचना
आदरणीया मधुलिका दीदी जी
Deleteसुन्दर अल्फाजों से हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया
हर एक शेर शानदार ।बहुत सराहनीय अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteआदरणीया जिज्ञासा दीदी जी
Deleteसुन्दर अल्फाजों से हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबधाई
आदरणीय खरे भाई साहब जी
Deleteसुन्दर अल्फाजों से हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया
बहुत ही बढ़िया।
ReplyDeleteआदरणीया अमृता दीदी जी
Deleteसुन्दर अल्फाजों से हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया