Saturday, February 12, 2022

तस्दीक

जिंदगी ने भी कल तोहमत लगाई थी l
संभाली नहीं आरज़ुएँ मुद्दतों से मैंने कई ll

गिनी थी कल इसने मेरे साँसों की माला l
बड़ी बदरंग सी थी इनमे कुछ की काया ll

कुछ रोज पहले रंग भरे दिल की गहराइयों ने l
रंगी थी तस्वीर जिस इश्कों नूर ए चाँद की ll

धड़कनों में डूबी अपनी जिस कूची परछाई से l
पर कल रात वो क्यों नज़र आयी अर्ध चाँद सी ll

थम गयी रफ़्तार शायद मेरे अरमानों की l
राख हो गयी धुंआ मेरे जलते अंगारों की ll

तस्दीक यही हैं मेरी खुद से रुस्वाई का l
हमराज़ कोई बना नहीं मेरी परछाईं का ll

हमराज़ कोई बना नहीं मेरी परछाईं का l
हमराज़ कोई बना नहीं मेरी परछाईं का ll

12 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (१३-०२ -२०२२ ) को
    'देखो! प्रेम मरा नहीं है'(चर्चा अंक-४३४०)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. आदरणीया अनीता दीदी जी
      मेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिये तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ l

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  2. वाह अति सुन्दर सृजन

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    1. आदरणीया भारती दीदी जी
      सुन्दर अल्फाजों से हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया

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  3. बहुत ही खूबसूरत सृजन 💐
    बहुत ही गहरे भाव!

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    1. आदरणीया मनीषा दीदी जी
      सुन्दर अल्फाजों से हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया

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  4. आदरणीय मनोज जी, बहुत सुंदर पंक्तियाँ!
    तस्दीक यही हैं मेरी खुद से रुस्वाई का l
    हमराज़ कोई बना नहीं मेरी परछाईं का ll
    साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ

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    1. आदरणीय बृजेंद्र भाई साहब जी
      सुन्दर अल्फाजों से हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया

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  5. वाह! लाज़वाब सृजन।
    बहुत ही सुंदर।

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    1. आदरणीया कुसुम दीदी जी
      सुन्दर अल्फाजों से हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया

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  6. परछाइयें लुप्त हो जाती हैं ... उनके हमराज भी लुप्त हो जाते हैं ...
    अच्छी शायरी ...

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    1. आदरणीय दिगंबर भाई साहब जी
      सुन्दर अल्फाजों से हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया

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