जिंदगी ने भी कल तोहमत लगाई थी l
संभाली नहीं आरज़ुएँ मुद्दतों से मैंने कई ll
गिनी थी कल इसने मेरे साँसों की माला l
बड़ी बदरंग सी थी इनमे कुछ की काया ll
कुछ रोज पहले रंग भरे दिल की गहराइयों ने l
रंगी थी तस्वीर जिस इश्कों नूर ए चाँद की ll
धड़कनों में डूबी अपनी जिस कूची परछाई से l
पर कल रात वो क्यों नज़र आयी अर्ध चाँद सी ll
थम गयी रफ़्तार शायद मेरे अरमानों की l
राख हो गयी धुंआ मेरे जलते अंगारों की ll
तस्दीक यही हैं मेरी खुद से रुस्वाई का l
हमराज़ कोई बना नहीं मेरी परछाईं का ll
हमराज़ कोई बना नहीं मेरी परछाईं का l
हमराज़ कोई बना नहीं मेरी परछाईं का ll
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (१३-०२ -२०२२ ) को
'देखो! प्रेम मरा नहीं है'(चर्चा अंक-४३४०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आदरणीया अनीता दीदी जी
Deleteमेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिये तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ l
वाह अति सुन्दर सृजन
ReplyDeleteआदरणीया भारती दीदी जी
Deleteसुन्दर अल्फाजों से हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया
बहुत ही खूबसूरत सृजन 💐
ReplyDeleteबहुत ही गहरे भाव!
आदरणीया मनीषा दीदी जी
Deleteसुन्दर अल्फाजों से हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया
आदरणीय मनोज जी, बहुत सुंदर पंक्तियाँ!
ReplyDeleteतस्दीक यही हैं मेरी खुद से रुस्वाई का l
हमराज़ कोई बना नहीं मेरी परछाईं का ll
साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ
आदरणीय बृजेंद्र भाई साहब जी
Deleteसुन्दर अल्फाजों से हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया
वाह! लाज़वाब सृजन।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर।
आदरणीया कुसुम दीदी जी
Deleteसुन्दर अल्फाजों से हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया
परछाइयें लुप्त हो जाती हैं ... उनके हमराज भी लुप्त हो जाते हैं ...
ReplyDeleteअच्छी शायरी ...
आदरणीय दिगंबर भाई साहब जी
Deleteसुन्दर अल्फाजों से हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया