सोहबत में उस अजनबी के ऐसे रंगे हम l
तोहमत उसके गुनहा की हमको डस गयी ll
पिंजर से इस परिंदे का रुख कैसे अब रुखसत हो l
जब महताब के दाग में उसके गालों का तिल हो ll
कायल थे जब हिजाब के पीछे छुपी उस नजाकत के l
नफासत भरे पैगाम से इश्क़ लाजमी फिर कैसे ना हो ll
जादुई स्पर्श सा था उसकी मीठी मीठी बातों में l
सुध बुध भुला खो जाये साँसे जिन मुलाकातों में ll
बेकरार उनकी निगाहों पलकों के दरमियाँ l
छिपा था बेबाक दीवानगी का आलम ऐसा ll
मुसाफिर मुझसा मशहूर गया उसके नाम से ऐसे l
पता कोई अपना भूल गया उसके घर के आगे जैसे ll
एक से बढ़ कर शेर कहे हैं ।वह ।
ReplyDeleteआदरणीया संगीता दीदी जी
Deleteसुन्दर अल्फाजों से हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी एक रचना शुक्रवार ७ जनवरी २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
नववर्ष मंगलमय हो।
आदरणीया स्वेता दीदी जी
Deleteमेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिये तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ l
आभार
बढ़िया शेर शुभकामनाएं
ReplyDeleteआदरणीया सरिता दीदी जी
Deleteसुन्दर अल्फाजों से हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया
वाकई!कायल करने वाला । बहुत ही बढ़िया ।
ReplyDeleteआदरणीया अमृता दीदी जी
Deleteसुन्दर अल्फाजों से हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया