गुलदस्तां हैं तू उन शबनमी गुलाबों का l
इश्क़ महके जिसके चुभते काँटों से भी ll
नाजुक कोमल पँखुड़ियों सा तेरा मासूम स्पर्श l
छू रही मधुर चाँदनी जैसे कोई रसीला यौवन ll
महक रही पुरबाई बयार तेरी साँसों से ऐसे l
सुगंध तेरी मिल गयी इन धड़कनों से जैसे ll
कायनात तू इन रूमानी जज्बातों की l
जिस्म आफ़ताब रूहानी अंदाज़ों की ll
फरिश्ता तू उन मीठी चिलमन रातों की l
डूबी रही सहर जिनके बंद गुलज़ारों की ll
सिमटी रहे सपनों सी इस निन्दियाँ गोद में l
कैद करलूँ इन लम्हों को पलकों आगोश में ll