Wednesday, January 19, 2022

गुलदस्तां

गुलदस्तां हैं तू उन शबनमी गुलाबों का l
इश्क़ महके जिसके चुभते काँटों से भी ll

नाजुक कोमल पँखुड़ियों सा तेरा मासूम स्पर्श l 
छू रही मधुर चाँदनी जैसे कोई रसीला यौवन ll

महक रही पुरबाई बयार तेरी साँसों से ऐसे l
सुगंध तेरी मिल गयी इन धड़कनों से जैसे ll

कायनात तू इन रूमानी जज्बातों की l
जिस्म आफ़ताब रूहानी अंदाज़ों की ll

फरिश्ता तू उन मीठी चिलमन रातों की l 
डूबी रही सहर जिनके बंद गुलज़ारों की ll

सिमटी रहे सपनों सी इस निन्दियाँ गोद में l 
कैद करलूँ इन लम्हों को पलकों आगोश में ll 

Saturday, January 15, 2022

नया आयाम

अधरों पर अल्फाज़ मेरे थे पर ज़ज्बात तेरे थे l
अश्कों के दरिया में पर नयन दोनों के साथ थे ll

विरल थी तेरी वो अर्ध चाँद सी मासूम हँसी l
प्रेम ग्रहण लगा गयी जो इस नादाँ दिल को ll

महक रहा गुलाब सा यौवन गुल गुलशन सारा l
तेरे केशों साज में सजा जैसे वेणी गजरा सारा ll

ओढ़ ली जब आफताब ने चादर तेरे इश्क नाम की l
मुलाकातों के सायों में हमकदम भी एक साथ हो ll

मधुमास अंगार में जलती इसकी विरह चेतना l
रंग फूलों का गुलाब के इत्र सा महका रही जो ll

ख़ामोश सुर्ख लबों पर इश्क फ़साना लिख l
इबादत का नया आयाम दे गयी इस दिल को ll

Thursday, January 6, 2022

सोहबत

सोहबत में उस अजनबी के ऐसे रंगे हम l
तोहमत उसके गुनहा की हमको डस गयी ll 

पिंजर से इस परिंदे का रुख कैसे अब रुखसत हो l 
जब महताब के दाग में उसके गालों का तिल हो ll  

कायल थे जब हिजाब के पीछे छुपी उस नजाकत के l 
नफासत भरे पैगाम से इश्क़ लाजमी फिर कैसे ना हो ll

जादुई स्पर्श सा था उसकी मीठी मीठी बातों में l
सुध बुध भुला खो जाये साँसे जिन मुलाकातों में ll  

बेकरार उनकी निगाहों पलकों के दरमियाँ l
छिपा था बेबाक दीवानगी का आलम ऐसा ll

मुसाफिर मुझसा मशहूर गया उसके नाम से ऐसे l 
पता कोई अपना भूल गया उसके घर के आगे जैसे ll  


 

Tuesday, January 4, 2022

धुँधला

रिश्तों के बाजार में नया कुछ ना था l
दर्पण में हर एक चेहरा धुँधला सा था ll

अर्सों सँवारा नाजों से जिस हर एक पल को l 
काफूर गुम था वजूद हर एक उस पल का ll

टुकड़ों टुकड़ों बिका मैं भी परिंदा नादान l
तौलता गया तराजू बिन किये दर भाव ll

स्पर्श था रक्त का हवाओं के आस पास l
बहा था मेरा लहू जो अश्कों के साथ साथ ll 

सौदागरी बदल गयी देखने परखने के अंदाज़ l 
काफ़िरना बन गया मैं काफिरों के साथ साथ ll

हर एक मोल में थी छुपी थी एक ही अरदास l
कहीं दिल ना बिक जाये जिस्म के साथ साथ ll 

अहमियत खो गए सारे जज्बाती बात व्यवहार l
धूल में मिल मिट गए रिश्तों के सारे तार सार ll

सौदागरों की इस बस्ती में रिश्ते थे बेईमान l
अक्स भी धुँधला हो जाता आकर दर्पण पास ll